रविवार, 23 जुलाई 2017

मोहब्बत की पहली कहानी नई थी।






















शहर में मैं आई तो जवानी नई थी।
मोहब्बत की पहली कहानी नई थी।


बर्बाद हो जाऊंगी ना पता था।
चढ़ी यह जो मुझ पर खुमारी नई थी।


 बड़ी नाजों से मेरी इज्जत उतारा।
 धोखे की प्यारी कहानी नई थी।


बहुत रोई - धोई न उससे मिलूँगी
मैं फिर भी मिली मजबूरी नई थी । 


पोछे थे आंसू , की प्यारी सी बातें।
उसकी चालाकियों की कहानी नई थी।


चला यूं ही कुछ दिन मोहब्बत का किस्सा
फिर मां से मिलाने की चालें नई थी। 


जिसे अपनी मां कहकर मिलवाया उसने।
खिलाड़ी थी पक्की नहीं वो नई थी।


मैं तब से यही हूं कभी वो ना आया ।
कोठा था ये इसकी रस्में नई थी।


सभी कहते मुझको यही चाहिए बस।
शोर था कि कोई माल आई नई थी।


 बड़ी  चीखी- चिल्लाई रोइ थी मैं भी।
 कराती वो चुप कहती मैं भी नई थी ।


रौंदने के लिए मुझको बारी लगी थी
मर रही थी मगर चर्चा थी मैं नई थी।


 6 महीने में ही लाश मैं बन चुकी थी।
बहुतों की खातिर अभी भी नई थी ।


आगे की दास्तां अब मैं कह ना सकूंगी ।
पागल हो जाऊंगी सुनो, मैं नई थी, नई थी ।


पवन तिवारी
poetpawan50@gmail.com
संपर्क;7718080978

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