बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

साँझ ढली नहीं आये रे संवरिया.

साँझ ढली नहीं आये रे संवरिया.
झींगुर बोले , दादुर टेरे.
टप-टप चुए मोरी ओरिया.


मेघा बरसे ,बिजुरी चमके
हूक उठे मोरे हिय में संवरिया.


सांझ ढली घिर आयी अंधियरिया.

चन्दा का भी कुछ पता नहीं है.
फिर तारों की मैं करूँ का बतिया.


सांझ गयी चढ़ आयी अंधियरिया.


सरसर–सरसर पवन चले है.
रह-रह उड़े मोरी चोलिया.


मोहें डराए ठंडी अंधियरिया. 


दीपक जलते ही बुझ जाए

छन भर उजाला..


फिर घोर अंधियरिया.
poetpawan50@gmail.com

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