यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी
मंगलवार, 27 अक्टूबर 2015
रविवार, 18 अक्टूबर 2015
कथा संग्रह ''चवन्नी का मेला'' की कहानी ''तेरे को मेरे को'' पर आधारित हिन्दी फीचर फिल्म ''गोल्डन राइज ऑफ़ स्लम ज्वेल्स '' का मुहूर्त संपन्न
मेरे
कथा संग्रह ''चवन्नी का मेला'' की कहानी ''तेरे को मेरे को'' पर आधारित हिन्दी फीचर फिल्म ''गोल्डन राइज ऑफ़ स्लम ज्वेल्स '' का मुहूर्त वीरा देसाई मार्ग गीत स्टूडियो में एक प्रार्थना गीत की रिकार्डिंग के साथ अंधेरी [प.] में संपन्न हुआ .फिल्म के निर्देशक अनवर हुसैन के अनुसार यह फिल्म एक ऐसी फिल्म है जो गरीब ,वंचित , शोषित और संघर्षरत 15 से 18 के किशोर उम्र के बच्चों की कहानी हैं , हिन्दी सिनेमा में पहली बार किशोर बच्चों पर केन्द्रित एक पूर्ण फिल्म बन रही है . इससे पहले या तो युवाओं या छोटे बच्चों पर फ़िल्में बनती रही हैं हिन्दी फिल्मों में 14 से 17 की उम्र के किशोरों पर केन्द्रित फिल्मे न के बराबर बनीं हैं . ये फिल्म दिन भर छोटे -मोटे काम करके और फिर शाम को नाईट स्कूलों में पढ़ने वाले ,सपने देखने वाले , वक्त से दो- चार हाथ करने की इच्छा रखने वाले किशोर छात्रों की मनोरंजन और प्रेरणा से पूर्ण कहानी है . अनवर जी के अनुसार कहानी के विषय ने मुझे फिल्म बनाने के लिए मजबूर कर दिया .सैयद अनवर हुसैन गत 25 वर्षों से फिल्म निर्देशन से जुड़े हुए हैं .इन्होने आर के नैय्यर और फिरोज खान जैसे बड़ेनिर्देशकों के साथ काम किया . इस फिल्म का निर्माण रेयर इमैजिनेशन और एक्स्प्रेसंस एंड डायलाग के बैनर तले हो रहा है सह निर्माता हैं श्याम पुरोहित जी एसोसियेट प्रोड्यूसर हैं ब्लू एप्पल इंटरटेनमेंट, निर्देशक एवं गीतकार हैं सैयद अनवर हुसैन ,संगीतकार हैं रिकी , स्क्रिप्ट [ कथा पटकथा संवाद ] पवन तिवारी की है कैमरामैन हैं नीलाभ कौल ,कला निर्देशक हैं नेशनल एवार्ड विजेता सी वी मोरे जी ,एक्शन मास्टर हैं राजू वर्मा ,संपादक हैं पी . श्रीवास्तव
कथा संग्रह ''चवन्नी का मेला'' की कहानी ''तेरे को मेरे को'' पर आधारित हिन्दी फीचर फिल्म ''गोल्डन राइज ऑफ़ स्लम ज्वेल्स '' का मुहूर्त वीरा देसाई मार्ग गीत स्टूडियो में एक प्रार्थना गीत की रिकार्डिंग के साथ अंधेरी [प.] में संपन्न हुआ .फिल्म के निर्देशक अनवर हुसैन के अनुसार यह फिल्म एक ऐसी फिल्म है जो गरीब ,वंचित , शोषित और संघर्षरत 15 से 18 के किशोर उम्र के बच्चों की कहानी हैं , हिन्दी सिनेमा में पहली बार किशोर बच्चों पर केन्द्रित एक पूर्ण फिल्म बन रही है . इससे पहले या तो युवाओं या छोटे बच्चों पर फ़िल्में बनती रही हैं हिन्दी फिल्मों में 14 से 17 की उम्र के किशोरों पर केन्द्रित फिल्मे न के बराबर बनीं हैं . ये फिल्म दिन भर छोटे -मोटे काम करके और फिर शाम को नाईट स्कूलों में पढ़ने वाले ,सपने देखने वाले , वक्त से दो- चार हाथ करने की इच्छा रखने वाले किशोर छात्रों की मनोरंजन और प्रेरणा से पूर्ण कहानी है . अनवर जी के अनुसार कहानी के विषय ने मुझे फिल्म बनाने के लिए मजबूर कर दिया .सैयद अनवर हुसैन गत 25 वर्षों से फिल्म निर्देशन से जुड़े हुए हैं .इन्होने आर के नैय्यर और फिरोज खान जैसे बड़ेनिर्देशकों के साथ काम किया . इस फिल्म का निर्माण रेयर इमैजिनेशन और एक्स्प्रेसंस एंड डायलाग के बैनर तले हो रहा है सह निर्माता हैं श्याम पुरोहित जी एसोसियेट प्रोड्यूसर हैं ब्लू एप्पल इंटरटेनमेंट, निर्देशक एवं गीतकार हैं सैयद अनवर हुसैन ,संगीतकार हैं रिकी , स्क्रिप्ट [ कथा पटकथा संवाद ] पवन तिवारी की है कैमरामैन हैं नीलाभ कौल ,कला निर्देशक हैं नेशनल एवार्ड विजेता सी वी मोरे जी ,एक्शन मास्टर हैं राजू वर्मा ,संपादक हैं पी . श्रीवास्तव
शनिवार, 17 अक्टूबर 2015
धृतराष्ट्र लेखकों व कथित बुध्दिजीवियों की मैं घोर निंदा करता हूँ
धृतराष्ट्र लेखकों व कथित बुध्दिजीवियों की मैं घोर निंदा करता हूँ
.मित्रों दादरी में अख़लाक़ की हत्या जितनी निंदा की जाए कम है परन्तु उन लोगों के खिलाफ़ आवाज उठानी होगी जो इस हत्या को 84 के सिख दंगों , कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार , भागलपुर दंगे , आपातकाल, मुजफ्फर पुर दंगे . गोधरा दंगे , फैजाबाद दंगे , केरल में हिन्दू भाइयों की हत्या ,बंगाल में पूरे हिन्दुओं के गाँव को घेर कर जला दिया गया .जिसका जिक्र तस्लीमा नसरीन ने आज के नवभारत टाइम्स को दिए साक्षात्कार में किया है .ऐसे अनगिनत उदाहरण है . उस पर पुरस्कार लौटाने वाले कथित बुद्धिजीवी लेखक क्यों नहीं अपनी जुबान खोले क्या हिन्दू होना, हिन्दू की पीड़ा ,हिन्दू का मरना अथवा अपमानित होना कोई मायने नहीं रखता हम कीड़े - मकोड़े हैं . एक मुस्लिम का मरना अर्थात लोकतंत्र संकट में ,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संकट में ,असहिष्णुता चरम पर ,,धर्मनिरपेक्षता खतरे में, क्या इतनी खतरनाक स्थिति में भारत पहुँच गया है. अख़लाक़ की दर्दनाक हत्या को हिन्दू बनाम मुस्लिम बनाकर वस्तु की तरह बेचा जा रहा है , मीडिया इसे अन्तर्राष्ट्रीय घटना बनाने पर तुली है और कथित लेखक इसे अपने विरोध के हथकंडे से वैश्विक स्तर पर भारत की ऐसी छवि विदेशी मीडिया के सहारे गढ़ने में लगे हैं जैसे भारत में अभिव्यक्ति की , धर्मनिरपेक्षता की कोई जगह ही नहीं बची है भारत में अराजकता अपने चरम पर है .आपातकाल जैसी स्थिति है . आज लेखक होने का अर्थ है हिन्दू विरोध इन लेखकों का अस्तित्व ही इसी अवधारणा पर टिका है . आज से पहले कितने लोग इन लेखको जानते थे पर आज ये देश की इज्जत विदेशों में बेच कर अपना नाम चमका रहे हैं .ये एक तरह का राष्ट्र द्रोह ही है आज भी हम एक भारतीय बन कर नहीं बल्की हम हिन्दू मुस्लिम बनकर जी रहे हैं . यही वो मानसिकता थी जिसने भारत को चीर कर भारत पाकिस्तान बना दिया . पर हमने उससे कुछ नहीं सीखा .नेता तो नेता आज बुद्धिजीवी भी हिन्दू मुस्लिम की राजनीति कर रहे हैं . आज जो लेखक जिस सुनियोजित तरीके से विरोध कर रहे हैं वह दर्शाता है कि नेताओं को उन्होंने राजनीति में फेल कर दिया है . यह वास्तव में एक चुनी हुई सरकार के खिलाफ सुनियोजित षड्यंत्र है. जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमत होने के अधिकार के तहत अपने अधिकार का प्रयोग इस सरकार व बहुसंख्य लोगों विरोध में कर रहे हैं बड़े सम्मान के साथ उन्ही अधिकारों के तहत हम उनका विरोध रहे हैं. उनके पुरस्कार लौटाने के छद्म कारणों की घोर निंदा करते हैं .लेखक निष्पक्ष होता है और ये पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं ऐसे धृतराष्ट्र लेखको बुद्धिजीवियों की हम भर्त्सना करते हैं. माँ शारदा का पुत्र होने का दंभ भरने वाले इन कथित पुत्रो को माँ शारदे सद्बुद्धि दें
.मित्रों दादरी में अख़लाक़ की हत्या जितनी निंदा की जाए कम है परन्तु उन लोगों के खिलाफ़ आवाज उठानी होगी जो इस हत्या को 84 के सिख दंगों , कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार , भागलपुर दंगे , आपातकाल, मुजफ्फर पुर दंगे . गोधरा दंगे , फैजाबाद दंगे , केरल में हिन्दू भाइयों की हत्या ,बंगाल में पूरे हिन्दुओं के गाँव को घेर कर जला दिया गया .जिसका जिक्र तस्लीमा नसरीन ने आज के नवभारत टाइम्स को दिए साक्षात्कार में किया है .ऐसे अनगिनत उदाहरण है . उस पर पुरस्कार लौटाने वाले कथित बुद्धिजीवी लेखक क्यों नहीं अपनी जुबान खोले क्या हिन्दू होना, हिन्दू की पीड़ा ,हिन्दू का मरना अथवा अपमानित होना कोई मायने नहीं रखता हम कीड़े - मकोड़े हैं . एक मुस्लिम का मरना अर्थात लोकतंत्र संकट में ,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संकट में ,असहिष्णुता चरम पर ,,धर्मनिरपेक्षता खतरे में, क्या इतनी खतरनाक स्थिति में भारत पहुँच गया है. अख़लाक़ की दर्दनाक हत्या को हिन्दू बनाम मुस्लिम बनाकर वस्तु की तरह बेचा जा रहा है , मीडिया इसे अन्तर्राष्ट्रीय घटना बनाने पर तुली है और कथित लेखक इसे अपने विरोध के हथकंडे से वैश्विक स्तर पर भारत की ऐसी छवि विदेशी मीडिया के सहारे गढ़ने में लगे हैं जैसे भारत में अभिव्यक्ति की , धर्मनिरपेक्षता की कोई जगह ही नहीं बची है भारत में अराजकता अपने चरम पर है .आपातकाल जैसी स्थिति है . आज लेखक होने का अर्थ है हिन्दू विरोध इन लेखकों का अस्तित्व ही इसी अवधारणा पर टिका है . आज से पहले कितने लोग इन लेखको जानते थे पर आज ये देश की इज्जत विदेशों में बेच कर अपना नाम चमका रहे हैं .ये एक तरह का राष्ट्र द्रोह ही है आज भी हम एक भारतीय बन कर नहीं बल्की हम हिन्दू मुस्लिम बनकर जी रहे हैं . यही वो मानसिकता थी जिसने भारत को चीर कर भारत पाकिस्तान बना दिया . पर हमने उससे कुछ नहीं सीखा .नेता तो नेता आज बुद्धिजीवी भी हिन्दू मुस्लिम की राजनीति कर रहे हैं . आज जो लेखक जिस सुनियोजित तरीके से विरोध कर रहे हैं वह दर्शाता है कि नेताओं को उन्होंने राजनीति में फेल कर दिया है . यह वास्तव में एक चुनी हुई सरकार के खिलाफ सुनियोजित षड्यंत्र है. जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमत होने के अधिकार के तहत अपने अधिकार का प्रयोग इस सरकार व बहुसंख्य लोगों विरोध में कर रहे हैं बड़े सम्मान के साथ उन्ही अधिकारों के तहत हम उनका विरोध रहे हैं. उनके पुरस्कार लौटाने के छद्म कारणों की घोर निंदा करते हैं .लेखक निष्पक्ष होता है और ये पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं ऐसे धृतराष्ट्र लेखको बुद्धिजीवियों की हम भर्त्सना करते हैं. माँ शारदा का पुत्र होने का दंभ भरने वाले इन कथित पुत्रो को माँ शारदे सद्बुद्धि दें