शनिवार, 17 अक्टूबर 2015

धृतराष्ट्र लेखकों व कथित बुध्दिजीवियों की मैं घोर निंदा करता हूँ

धृतराष्ट्र लेखकों  व कथित  बुध्दिजीवियों  की मैं घोर निंदा करता हूँ

.मित्रों दादरी में अख़लाक़ की हत्या जितनी निंदा की जाए कम है  परन्तु  उन लोगों के खिलाफ़ आवाज उठानी होगी जो इस हत्या  को 84 के सिख दंगों , कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार , भागलपुर दंगे , आपातकाल, मुजफ्फर पुर दंगे . गोधरा दंगे , फैजाबाद दंगे , केरल में हिन्दू भाइयों की हत्या  ,बंगाल में पूरे हिन्दुओं के गाँव को घेर कर जला दिया गया .जिसका जिक्र तस्लीमा नसरीन ने  आज के नवभारत टाइम्स को दिए साक्षात्कार में किया है .ऐसे अनगिनत उदाहरण है . उस पर पुरस्कार लौटाने वाले कथित बुद्धिजीवी  लेखक  क्यों  नहीं  अपनी जुबान खोले  क्या हिन्दू होना, हिन्दू की पीड़ा ,हिन्दू का मरना अथवा अपमानित  होना  कोई मायने  नहीं रखता  हम कीड़े - मकोड़े हैं . एक मुस्लिम का मरना  अर्थात लोकतंत्र संकट में ,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता  संकट में ,असहिष्णुता चरम पर ,,धर्मनिरपेक्षता  खतरे में, क्या इतनी खतरनाक स्थिति में भारत पहुँच गया है. अख़लाक़ की दर्दनाक हत्या को हिन्दू बनाम मुस्लिम  बनाकर वस्तु की तरह बेचा जा रहा है , मीडिया इसे अन्तर्राष्ट्रीय घटना बनाने पर तुली है और कथित लेखक  इसे अपने विरोध के हथकंडे से वैश्विक स्तर पर भारत की ऐसी छवि विदेशी मीडिया के सहारे गढ़ने में लगे हैं जैसे भारत में अभिव्यक्ति की , धर्मनिरपेक्षता की  कोई जगह ही नहीं बची है भारत में अराजकता अपने चरम पर है .आपातकाल जैसी  स्थिति है .  आज लेखक होने का अर्थ है हिन्दू विरोध इन लेखकों का अस्तित्व ही इसी अवधारणा पर टिका है . आज से पहले कितने लोग इन लेखको जानते थे  पर आज ये देश की इज्जत विदेशों में बेच कर  अपना नाम चमका रहे हैं  .ये एक तरह का राष्ट्र द्रोह ही है  आज भी हम एक भारतीय बन कर  नहीं  बल्की हम हिन्दू मुस्लिम बनकर जी रहे हैं . यही वो मानसिकता थी जिसने भारत को  चीर कर भारत पाकिस्तान  बना दिया . पर हमने उससे कुछ नहीं सीखा .नेता तो नेता  आज बुद्धिजीवी भी हिन्दू  मुस्लिम की राजनीति कर  रहे हैं . आज  जो लेखक  जिस सुनियोजित तरीके से विरोध  कर रहे हैं  वह दर्शाता है कि नेताओं को उन्होंने राजनीति में फेल कर दिया है . यह वास्तव में एक चुनी हुई सरकार के खिलाफ सुनियोजित  षड्यंत्र  है. जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता  और असहमत होने के अधिकार के तहत  अपने अधिकार का प्रयोग  इस सरकार  व बहुसंख्य   लोगों  विरोध में कर   रहे हैं   बड़े सम्मान के साथ उन्ही अधिकारों के तहत हम उनका विरोध  रहे हैं.  उनके पुरस्कार लौटाने के छद्म कारणों की घोर  निंदा करते हैं .लेखक निष्पक्ष होता है  और ये पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं  ऐसे धृतराष्ट्र लेखको  बुद्धिजीवियों की  हम भर्त्सना करते हैं. माँ शारदा का पुत्र होने का दंभ भरने वाले इन  कथित पुत्रो को माँ शारदे सद्बुद्धि दें    

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