बुधवार, 15 मई 2024

दर्द ने दर्द इतना बढ़ा है दिया




दर्द   ने  दर्द   इतना  बढ़ा है दिया

मैं हूँ जिंदा  मगर जान है ले लिया

प्यार  भी खेल है पर खतरनाक है

जान ले लेता है  कहने वाला पिया

 

कुछ समझ ही न आता हुआ या किया

बस उसी के लिए  रोता  हँसता जिया

जान  ले  सकते  हैं  जान  दे  सकते हैं

ऐसे  आलम  में  दोनों  के  रहते हिया

 

जब से धोखा हुआ और बिछड़े हैं हम

तब  से चारो दिशाओं में पसरा है गम

रोना - धोना  बहुत  छोटी  सी बात है

आँख  सूजी  हुई   हर घड़ी रहती नम

 

रोज़ ही ख़ुद से ख़ुद ही में होता हूँ कम

ज़िंदादिल  ज़िंदगी  है  गयी   जैसे  थम

अब तो  आशा, उजालों  से  दूरी  बनी

ऐसा  लगता  है  घेरे  खड़ा मुझको तम

 

इसलिए उर से  उर को लगाना नहीं

प्रेम  को  भूले  से  भी  जगाना   नहीं

मन्त्र  जो   दे  रहा  मैं  बड़े  काम का

किंतु आ जाए तो  फिर भगाना नहीं  

 

पवन तिवारी

१५/०५/२०२४       

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