बुधवार, 23 नवंबर 2022

छल है घृणित अस्त्र जीवन में



छल है घृणित अस्त्र जीवन में

अपनों  से  बहुधा  मिलता है

उनसे जो क्षति  हिय की होती

उसको अन्य  कोई  सिलता है

 

अल्प अवधि के लिए मिले दुःख

तो दुःख से   जीवन   खिलता है

दाग  अगर  मन पर  अंकित हो

ऐसे     में     धीमे     धुलता     है

 

चित्र   हैं    बहुरंगी   जीवन  के

रंग   किन्तु   कोई   फलता  है

पर   कुछ   रंग   उभरते   ऐसे

जिनसे   जीवन  भी  जलता है

 

जलता  बुझाता  जैसे  दीपक

ऐसे  कुछ  जीवन   पलता  है

नहीं समझ पाता जो ये  सब

जीवन में  वो  हाथ मलता है

 

जीवन तो  सबसे  अनुपम है

इसीलिये ये मृत्यु को खलता

इसको   पाने   के  प्रयास में

यम जीवन भर  पीछे चलता

 

पवन तिवारी

२३/११/२०२२           

  

मंगलवार, 15 नवंबर 2022

अपने लोग पराये होते



अपने लोग पराये होते

और पराये अपने

जीवन में तो देख ही रहे

नींद में भी ये सपने

 

सच से पीछा छुड़ा रहे हैं

झूठ लगे हैं जपने

सर्दी के मौसम में भी कुछ

लोग लगे हैं तपने

 

जिन्हें कहे हैं अपना उनको

देख लगे हैं कंपने

जान बचाकर यूँ भागे कि

लगे जोर से ह्न्फने

 

छोटे-छोटे व्यवहारों में

जीवन लगा है खपने

घर की छोटी कलह लगी है

अखबारों में छपने

 

पवन तिवारी

१५/११/२०२२

 

 

सोमवार, 7 नवंबर 2022

मन था दूषित मिली तुम हुई शुद्धता



मन था दूषित मिली तुम हुई शुद्धता

मूढ़  को  प्राप्त  जैसे  हुई  बुद्धता

लोग कहते  आवारा  नकारा भी थे

लोगों को मुझमें अब दिखती प्रतिबद्धता

 

जग के तानों ने मुझको किया त्रस्त था

मेरे उत्साह  को  भी  किया पस्त था

भाग्यवश तुम मिली या कि जैसा भी हो

एक बेचारा जीवन  में फिर व्यस्त था

 

प्रेम  ने  मार्ग  मेरा  प्रशस्त किया

क्रूर गृह मेरे जितने थे अस्त किया

तुम ही लक्ष्मी तुम्हीं शारदा हो प्रिये

सारे अवरोधों को तुमने ध्वस्त किया

 

प्रेम जादू नहीं  उससे  भी श्रेष्ठ है

प्रेम सारे गुणों  में सहज ज्येष्ठ है

एक ओछे को इसने किया शिष्ट है

प्रेम पाकर लगा अब कि यथेष्ट है

 

पवन तिवारी

०६/११/२०२२

रविवार, 6 नवंबर 2022

चिंता ने चिन्तन को मारा

चिंता ने चिन्तन को मारा

अंदर  साहस  थोड़ा  हारा

फिर क्रोध का पथ कुछ सुगम हुआ

चढ़ आया मस्तक तक पारा

 

सुख के दिन स्वप्न हुए जैसे

उलझन में मन कि हुआ कैसे

फिर आय घटी बढ़ गये खर्चे

जोड़ने   पड़े    पैसे   पैसे

 

संख्या अपनों की घटने लगी

किच-किच आपस में बढ़ने लगी  

संतोष  घटा   ईर्ष्या  जागी

छाया रिश्तों  पर पड़ने लगी

 

चिंता जीवन  को  नष्ट करे

तन मन को पूरा  भ्रष्ट करे

इससे बचने का  यत्न सदा

अन्यथा सभी में  कष्ट करे

 

संतोष करें  चिंतन  कर लें

मन के गुल्लक खुशियाँ भर लें

आवश्यकता  अभिलाषा नहीं

इस मन्तर की उंगली धर लें

 

पवन तिवारी

०१/११/२०२२