रविवार, 7 अगस्त 2022

वह निर्निमेष सा अवलोकन



वह निर्निमेष सा  अवलोकन

तुम पर ही गड़ा रहा लोचन

अन्तरतम की धुक धुकी बढ़ी

अनुपम स्वरूप  ऐसा शोधन

 

अब रूप नहीं  भरमा  पाते

जैसे   मुझसे   हैं   शरमाते

तुम्हरा स्वरुप है बसा हुआ

सब तुच्छ से  हैं  आते जाते

 

तुम काया से कहीं हो बढ़कर

सारी   विद्याएँ   हो  पढ़कर

दारा   स्वरुप   में  देवी  सी

तुम रूप शिखा पर हो चढ़कर

 

जब से तुम  से  संवाद  हुआ

लागे ज्यों  अनहद नाद हुआ

जो कुछ अकथ्य अव्यक्त रहा

उन सबका भी अनुवाद हुआ

 

आधा जीवन   छल घोंट गया

जैसे था  सब  कुछ  ओट गया

तुमने  सब  खेद  मिटा डाला

तुम पर आहत मन लोट गया

 

पवन तिवारी

०७/०८/२०२२     

 

 

1 टिप्पणी:

  1. जब से तुम से संवाद हुआ
    लागे ज्यों अनहद नाद हुआ
    जो कुछ अकथ्य अव्यक्त रहा
    उन सबका भी अनुवाद हुआ
    👌👌👌
    अत्यंत भाव-पूर्ण और उत्कृष्ट रचना सुदक्ष कवि की लेखनी से।बधाई पवन जी 🙏

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