बुधवार, 10 अगस्त 2022

नयनों के मेरे निकेतन में



नयनों  के  मेरे  निकेतन  में

अन्तःपुर   के   अवचेतन  में

तुम प्रहर घड़ी प्रति-प्रति क्षण में

तुम रोम रोम में मन तन में

 

यह लगन  नहीं  साधारण है

इसका बड़ा महती कारण है

अनुरक्ति  कई जन्मों की यह

यह   प्रारब्धों  से  धारण  है

 

मुख   देखे   तुमसे  भी  सुंदर

पर बसती हो  तुम  ही  अंदर

तुम्हरा विचार दुःख हर लेता

जैसे   हूँ    देख  लिया  कुंदर

 

अर्चन  जैसी   अभिलाषा  हो

पहली तुम्हीं अंतिम आशा हो

तुम्हें   देख  हूँ  उत्सुक  होता

केवल  तुम  ही  जिज्ञासा  हो

 

इससे ऊँचा  ना  भाव  शिखर

जाऊँगा  तुम्हरे  बिना  बिखर

तुम्हरा मिलना अद्भुत होगा

मैं  जाऊँगा  प्रति  पोर निखर  

 

पवन तिवारी

९/०८/२०२२

3 टिप्‍पणियां:

  1. शब्द नहीं हैं मेरे पास।इतनी सुन्दर अनुरागी मन की अभिव्यक्ति पढ़ दिल को रूहानी आनन्द आया।पर हे कविराज! आपने कवितायेँ डालने में जो जल्दी मचाई है पाठक तक पहुँचने में नही आती।फिर भी आभार और शुभकामनाएँ 🌺🌺🌹🌹

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  2. धन्यवाद रेणु जी, कविताएं इसलिए प्रकाशित कर दे रहा हूँ, ताकि पाठक को जब भी समय मिले पढ़ सके। मेरे पास इन दिनों थोड़ा समय था। इसलिए इन्हें टंकित कर प्रकाशित कर दिया। अब शायद जल्दी समय न मिले।

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