शुक्रवार, 26 अगस्त 2022

कुसुमित वय में हो जाता है



कुसुमित  वय में हो जाता है

अभिरूप  देख  खो जाता है

मेरी  भी  दशा  सहज वैसी

मन उसी नगर को जाता है

 

तुम प्रतिभा में लोकोत्तर हो

तुम प्रति प्रश्नों का उत्तर हो

मैं साथ तुम्हारा पा न सका

इसलिए कहूँ तुम पत्थर हो

 

यह  कथा  कोई  रामायण ना

मैं   हूँ   कोई    नारायण  ना

अन्तः खीझा दुःख भी था पर

इतना भी  स्वार्थपरायण  ना

 

अब   देखा   वर्षों  बाद तुम्हें

संतानों   संग   आबाद  तुम्हें

मेरी  भी  दुनिया  कुछ ऐसी

दिल कहे  मुबारकबाद तुम्हें

 

ये   शोक   प्रेम  की  स्मृतियाँ

उर में भटकें कितनी  बतियाँ

इनसे  ही  जीवन  है अद्भुत

जीवन की हैं कितनी जतियाँ

 

पवन तिवारी

२५/०८/२०२२

4 टिप्‍पणियां:

  1. अब देखा वर्षों बाद तुम्हें
    संतानों संग आबाद तुम्हें
    मेरी भी दुनिया कुछ ऐसी
    दिल कहे मुबारकबाद तुम्हें///
    एक विगत प्रेमी के मन की व्यथा और वेदना को इंगित करती मार्मिक अभिव्यक्ति। एक नये अंदाज का आपकी काव्याभिव्यक्ति बहुत सुन्दर और भावपूर्ण है।मेरी शुभकामनाएं 🙏

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  2. सतत एक प्रतिबद्ध एवं सजग पाठक के रूप में आप की टिप्पणी प्रेरित करती है। स्नेह, सराहना हेतु अनेकानेक आभार👏💐

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  3. बीते दिनों की स्मृतियों का संवेदनात्मक पिटारा प्रस्तुत करती संभ्रांत रचना।
    बधाई हो आदरणीय

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