सोमवार, 4 जुलाई 2022

अकेलापन भी भाता है

अकेलापन   भी   भाता  है

किन्त्तु  लम्बा  तो  काटे  है 

घुमड़  आती  है  स्मृतियाँ

कि  बैठे   उनको  छांटे  है

 

कभी चेहरा है खिल जाता

उदासी   भी   कभी    घेरे 

कि दुःख सुख मित्र याद आते

समय  के  चल  रहे   फेरे

 

कभी  कोई  याद  आता है

कभी  माँ  याद   आती  है

अकेले  में  तो   दुविधाओं

की लहरें  आती  जाती हैं

 

सभी सुविधाएँ हों भी तो

वीरानी खल ही जाती है

सजग रहना भटकना भी

अचानक  से   डराती  है

 

 

अकेले    देर    तक    देखो

कभी  तुम  चुप नहीं रहना

कि मन की मार को चुपचाप

बिलकुल  भी  नहीं सहना

 

कि ख़ुद से बात करना और

हँस  कर   गुनगुनाना  तुम

कोई  सुनता  नहीं  तुमको

दीवारों   को  सुनाना तुम

 

तुम्हारी      जिन्दगी    में

हल्की–हल्की मौज आएगी

अकेलापन  भी    हारेगा

ज़िन्दगी    जीत   जायेगी

 

पवन तिवारी

१३/०१/२०२२  

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