शनिवार, 30 जुलाई 2022

कल्पना में तुम्हारी बनी अल्पना

कल्पना  में  तुम्हारी  बनी अल्पना

अन्य कोई नहीं क्यों तुम्हीं सोचना

मन नियत कर चुका था तुम्हीं अभिलषित

वेग अपने भी हिय का नहीं रोकना

 

दृग  हैं  जो  चाहते  दृश्य  को  देखना

नेह  दो  ऐसे  भावों  को मत  फेंकना

प्रेम  अभिसार  हो  करके  असंग  हो

हर किसी व्याधि से हो अधिक वेदना

 

लोचन   लोचना  की  है   आलोचना

है  प्रथम  राग  व्याघात को मोचना

दृष्टि कलुषित नहीं नेह  की  है तृषा

राग लोचन लिए  हो सुगम लोचना

 

फिर स्वतः नष्ट व्यवधान  हो जायेंगे

दो  हृदय   प्रेम  के  एक  में  पायेगे

स्वर  उठेंगे  नये  शून्य के पार तक

उर के संग काया के रोम भी गायेंगे

 

 

पवन तिवारी

१६/०६/२०२२

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