गुरुवार, 7 जुलाई 2022

कितना कुछ एक साथ

कितना कुछ  एक  साथ घटता है

कोई  बस  एक   बात   रटता है

वो एक  बात  बड़ी  होगी बहुत

जिससे हिय  चाह के न हटता है

 

एक    आँधी    उजाड़   देती है

ज़िन्दगी  को   पछाड़   देती है

फिर भी मुस्काके बढ़ती है आगे

धूल  की   तरह  झाड़  देती है

 

फिर भी दुःख के निशाँ रहते हैं

यादों के दुःख सदा ही सहते हैं

बाहरी दुनिया से हँसते मिलते

खुद से तो रोज दुःख को कहते हैं

 

यही  जीवन  है  मान  लेते  हैं

जैसे हम सब ही जान  लेते  हैं

आदमी हाड़ माँस  के हैं मगर

पाते  हैं  सब  जो  ठान लेते हैं

 

पवन तिवारी

०८/०१/२०२२

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