मंगलवार, 26 जुलाई 2022

प्रेम की अभिलाषा में

प्रेम की अभिलाषा में एक जवानी बीती

अपने से  छल  मिले  अन्य  से आस नहीं

अभी अंधेड़ हुए हैं अभी ही बना महल

अभी जरूरत है लेकिन वो प्यास नहीं है

 

मैं उनको, उनको  इनको  भी  जानूँ हूँ

पर इनमें से  कोई  मेरा  ख़ास नहीं है

सारे  निकट  दिखाई   देते   वर्षों   से

पर हिय जाने सच में कोई पास नहीं है

 

अब जो मिला है भरपाई से निश्चित कम है

फिर भी मन से कहता हूँ कोई काश नहीं है

एक  जवानी  थी    भी तड़पाकर  ली है

उस  पर  पूछ  रहे  हो  कोई  त्रास  नहीं है

 

समय  तुम्हारा  ही  सब गोरख धंधा है

और पूछते हो क्यों सर पे घास नहीं है

तुमने   मेरे  सूरज  पर   परदा  डाला

और कह रहे आँगन मेरा उजास नहीं है

 

जीवन  के  इस  उत्तरार्ध  में  मान मिला है

अच्छा है अब तो दुःख का सहवास नहीं है

अब से पहले कितना त्रास सहा तन मन ने

द्वारे  खड़ी  प्रतिष्ठा  पर  आभास  नहीं  है

 

पवन तिवारी

२३/०४/ २०२२

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें