गुरुवार, 23 जून 2022

हम अनायास थे

हम  अनायास  थे  दूर  थे  पास  थे

जग के ठुकराए खुद के बहुत पास थे

ठोकरों  से  कला जीने की सीख ली

अंततः  ज़िन्दगी  के  बहुत  पास थे

 

तुम अलग हो  कहाँ  से हो आये हुए

इतना  विश्वास   कैसे   कमाये  हुए

सारे हैं अजनबी फिर भी हो हँस रहे

कैसी  मिट्टी  के  हो तुम बनाये हुए

 

तुम  हो  आये  हुए  या  बुलाये हुए

जब से आये हो तुम ही हो छाये हुए

इससे  पहले  तुम्हें  मैंने  देखा नहीं

प्रेम  के  मारे  हो  या  भगाए  हुए

 

तुम मिली तो अपरिचित कहाँ मैं रहा

मेरी  आभा  को  केवल है तुमने गहा

प्रेम  की  मारी  तुम  मैं सताया हुआ

एक  हो  जायें  हमने  बहुत  है सहा

 

पवन तिवारी

१५/०९/२०२१    

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