गुरुवार, 16 जून 2022

आँसुओं में समय

आँसुओं  में   समय  सना  सा है

उर कई दिन से  अनमना सा है

कौन अपना  पराया कौन यहाँ

रिश्तों का पर्दा कुछ घना सा है

 

झूठ का  लेप  कुछ  चढ़ा  सा  है

और सच तन के कुछ खड़ा सा है

योग  से  बरखा  झमक के आयी

लेप  उतरा  बुझा   पड़ा  सा  है

 

कौन जग  में  धुला - धुला सा है

किसका चेहरा सदा खिला सा है

धूप औ छाँव जैसे  दुःख - सुख है

कुछ ना कुछ सबको ही गिला सा है

 

वक़्त दुःख से लगे मिला सा है

टूटता  है  नहीं  किला  सा  है

जिद्दी हम भी  हैं आदमी ठहरे

अपनी ठोकर से दुःख हिला सा है

 

पवन तिवारी

२३/०८/२०२१

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