शनिवार, 25 जून 2022

देखो कैसे है

देखो  कैसे  है  मेरा  घर उजड़ा

वक़्त ने इस तरह किया झगड़ा

मेरा अपना ही जलाया मुझको

कहने लायक भी नहीं ये लफड़ा

 

तुम गयी  याद  नहीं  जाती  है

दर्द  का  एक   घर  बनाती  है

जाने का प्रश्न कोई  उठता नहीं

जैसे मेरे  ज़िन्दगी की बाती है

 

अब है क्या जीना और मरना है

यादों से  दर्द-ए-इश्क करना है

आज  में  अब कभी नहीं रहना

अतीत  से  ही  ज़ख्म भरना है 

 

अब तो दिन में भी सपन आयेंगे

हँसते - हँसते   कभी  रुलायेंगे

सारे सपनों में फक़त तुम होगी

गीत  फिर  से  तुम्हें   सुनायेंगे

 

 

पवन तिवारी

२३/०९/२०२१

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