गुरुवार, 30 जून 2022

तुम रहो सदा ही नन्द

तुम  रहो   सदा   ही  नन्द

मुझे प्रिय होगा यही प्रसंग

तुम्हें  समृद्ध  करे यदि प्रेम

हैं   मेरी  वान्छायें बस चंद

 

लिखूँ  मैं  ऐसा  कोई  बंध

हर्ष से  झूमें  सुनकर  छंद

सभी आतुर हों होने मित्र

कि पसरे  ऐसी  सुंदर गंध

 

सभा हो अन्धकार की भंग

सूर्य भी आयें थोड़ा मध्यम मंद

रचें  कविता  में  ऐसे भाव

पवन भी  बहे  धीमे सानंद

 

मेरा लिखना शब्दों में व्यंग्य

कहीं शब्दों  में  थोड़ी सुगंध

सभी का  ध्येय  लोक मंगल

कभी भी  अर्थ  करें यदि दंग

 

पवन तिवारी

१५/१०/२०२१ 

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