गुरुवार, 30 जून 2022

जेठ की धूप को

जेठ  की  धूप  को  मैं  बहुत  हूँ सहा

चाहता धूप  अगहन सा  कोई  मिले

त्रास ने ताप ने  मुझको झुलसाया है

चाहता हूँ  ये जीवन पुनः पुनि खिले

 

देखता हूँ  प्रकृति  ख़ूब  सुंदर  लगे है

लोग   कैसे  यहाँ  हैं   ज़हर  से  भरे

प्रेम  से  है  अधिक वैर,इर्ष्या, जलन

प्रेम  की  बात   भी  कोई  कैसे  करे

 

तत्त्व जीवन की ख़ातिर बहुत चाहिए

काटना  और  जीना   अलग  बात  है

मिल गया सारा कुछ प्रेम वंचित रहा

उसके जीवन में दिन से अधिक रात है

 

इसलिए  चाहता  प्रेम  का  साथ हो

हे प्रभु ! कोई अच्छा सा साथी मिले

चाहता  हूँ  जीना  थक रहा हूँ मगर

प्रेम  उपहार  देकर  मिटा  दो  गिले

 

पवन तिवारी 

२४/१०/२०२१

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