सोमवार, 6 जून 2022

किसकी खातिर किसे

किसकी खातिर किसे कितना अवकाश है

सत्य का दोनों पक्षों को आभास है

कुछ अनायास होता नहीं आज - कल

जो हुआ दिख रहा है वो सायास है

 

ये जो फैला हुआ इतना आकाश है

बादलों को भी आता न ये रास है

कोशिशें उसको ढकने की सदियों से हैं

फिर भी डरता नहीं उनके ही पास है

 

चाँद तारे हैं हिय में समाये हुए

मेघ ने भी कई घर बनाये हुए

फिर भी नीली से निर्लिप्त मुस्कान दे

सबका स्वागत करे भुज उठाए हुए

 

एक हम दम्भ से हैं निहारा किये

सत्य को जानकार भी किनारा किये

झूठ को साथ लेकर चलें हर घड़ी

जीतते - जीतते सो भी हारा किये 

 

पवन तिवारी

२५/०७/२०२१

 

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