बुधवार, 1 जून 2022

तुम्हें प्रेम का दंड

तुम्हें प्रेम का दंड बस पा रहे हैं

जाना कहाँ था कहाँ जा रहे हैं

जीवन का अब हाल इससे समझ लो

सपन भी मेरे रोये जा रहे हैं

 

कैसे थे कैसे समय आ रहे हैं

गाना था क्या और क्या गा रहे हैं

कभी थे हमारे मेरे रह गये हैं

ये स्वप्न भी गाये जा रहे हैं

 

प्रेम वाले भी अब क़हर ढा रहे हैं

पीड़ा के काले काले घन छा रहे हैं

वीरान इस प्रेम ने कर दिया है

हालात ऐसे भी दिन ला रहे हैं

 

मेरी ज़िन्दगी में रस ना रहे हैं

मगर गीत मेरे बहुत भा रहे हैं

ये गीत आहों के स्वर पे सजे हैं

लोग हैं कि हँस हँस कर गा रहे हैं

 

पवन तिवारी

२०/०७/२०२१    

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