रविवार, 8 मई 2022

भय है पसरा

भय है पसरा उदासी छायी है

सब पे इक जैसी घड़ी आयी है

 

कहाँ मदद का हाथ बढ़ना था

कहाँ  पे  लूट  क़हर  ढायी है

 

आदमीयत की बाट सब करते

किन्तु दौलत यहाँ की माई है

 

साँस जाने को है कि अब उखड़ी

कुछ को उसमें  दिखे कमायी है  

 

साँस पर लाभ शर्म आती नहीं

परवरिश छीनने  की पायी है

 

अन्न के बिन भी पेट है भारी

पूरे दिन झूठी क़सम खायी है

 

पवन तिवारी

३०/०५/२०२१  

 

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