रविवार, 8 मई 2022

सपनों के कुछ दीप

सपनों  के   कुछ   दीप जले हैं

कुछ  पाषाण  अभी  पिघले हैं

शुभता  का   संकेत   तो  है ये

इस   जाड़े   में   बर्फ  गले  हैं

 

कई  बार  तो    हाथ  मेल  हैं

कई बार  खुद   को ही खले हैं

कई  बार  थक   जाने पर भी

चल चल के कई  कोस चले हैं

 

कुछ जो उम्र से  पहले ढले हैं

ढलते  ढलते  भी  निकले  हैं

कुछ छोटी के पास  पहुँचकर

अकस्मात यूँ   ही  फिसले हैं

 

जीवन  है  तो  सिले-गिले हैं

कुछ   अपनों से  गए छले हैं

कुछ  का जीवन रहा अजूबा

गैरों  के   जो   यहाँ   पले हैं

 

कई बार दिन सुख के टले हैं

कई बार  गिरकर  संभले हैं

जीवन तो आशा  से चलता

रातों  में भी  कुछ  उजले हैं

 

कितनों के अभिलषित फले हैं

अधिक नहीं पर कुछ तो भले हैं

संघर्षों   से  ही बनता जीवन

दुःख वाली भी कुछ गज़लें हैं

 

कई बार   दिल  भी   दहलें  हैं

कई  बार  हिय  भी  मसलें  हैं

फिर भी प्यार किया  है उर ने

छलने  वाले  फिर  भी  छले हैं

 

पवन तिवारी

०४/०५/२०२१

 

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