गुरुवार, 5 मई 2022

हम ही हम हों

हम ही हम  हों  कैसी  ये अभ्यर्थना है

अन्य के  हित  क्षरित  कैसी प्रार्थना है

लोग  कैसे  कहाँ  कितने  गिर  रहे  हैं

मनुजता  की  रक्षा  प्रभु जी अर्चना है

 

ये  समय  विकराल  होता  जा  रहा है

समय का भी काल होता होता जा रहा

कलि  अभी  भी  दूर  पीछे  आ रहा है

व्यक्ति ही कलि काल  होता जा रहा है

 

हत्या  अपने  ही  लहू  की  कर  रहे हैं

और मिथ्या  दम्भ  केवल  भर  रहे  है

एक  रावण  त्रेता  में  केवल  हुआ था

यहाँ तो हर  नगर  सीता  हर  रहे  हैं

 

एक केवल  राम  से  होगा  नहीं कुछ

सम्भल  जाओ  अभी भोगा नहीं कुछ

धर्म सा सब राम को धारण करो अब

शेष सारा  जाल है  धोखा  नहीं कुछ

 

 

पवन तिवारी

२६/०४/२०२१

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