मंगलवार, 31 मई 2022

एक प्रतिभा बस

एक  प्रतिभा  बस निरर्थक जा रही है

हाँ, घिसटती आगे भरसक जा रही है

वह  अनादर  झेलकर  पायेगी  आदर

जानती है वह सो अब तक जा रही है

 

जानता है, समय  उसका   रहा है

सो अंधेरों से  वो  लड़ता  जा  रहा है

भीड़ अंतिम दृश्य की ख़ातिर खड़ी है

इस कुटिलता से भी ना घबरा रहा है

 

स्वयं पर विश्वास  इतना कब रहा है

बैसवारे  का   निराला  जब  रहा है

सूर्य था वो आ  रहा है फिर उजाला

गज़ब है  संघर्ष  उस पर फब रहा है

 

स्वार्थी जग  उदित  को  पूजा सदा है

घृणित जग की आदि से ही ये अदा है

भोर का  आभास  प्रतिभा  दे  रही है

प्रतिभा के हीरों से उसका रथ लदा है

 

पवन तिवारी

१४/०७/२०२१    

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