सोमवार, 25 अप्रैल 2022

युद्ध चल रहा अधिकारों का

युद्ध चल रहा  अधिकारों का

समय चल रहा प्रतिकारों का

ऐसे  में  है   शिथिलता  वैरी

काल चल  रहा ललकारों का

 

चारो दिशा स्वार्थ बिखरा है

नैतिकता को यह  अखरा  है

पर उसकी अब कौन सुने हैं

हर कोई कहता खरा खरा है

 

कर्तव्यों  पर  मौन   जड़ा  है

कलयुग हर चौखट पे खड़ा है

धर्म  नीति  संयम  घायल  है

औंधे  मुँह  भी  सत्य  पड़ा है

 

ऐसे  में  बस  कर्म  प्रमुख  है

लड़कर मर जाना भी सुख है

कायर सा छुपना   और रोना

इससे  बड़ा  न कोई  दुःख है

 

 

पवन तिवारी

१६/०४/२०२१      

 

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