शनिवार, 23 अप्रैल 2022

स्मृतियों का कोलाहल है

स्मृतियों     का     कोलाहल  है

हिय का हिय भी बड़ा विकल है

आज सुना फिर  हिय का जाना

नैन झरें  झरना  छल - छल है

 

शब्द  भी  काँप  रहे हैं  सुनकर

रह गये सब अपना सर धुनकर

सारा  कुछ   इतिहास  हो गया

उलझ रहा  मन  स्मृति  बुनकर

 

प्रिय  जन एक - एक  कर जाते

उर  में   उतने   दाग   हैं  आते

इस  उर  को  भी  मर जाना है

क्या हम फिर उससे मिल पाते

 

मेरे  दुःख   संघर्ष  के   साथी

खुशियों   में   जैसे    बाराती

मृत्यु तेरा  जबरन   ले  जाना

ये   कायरता   नहीं   सुहाती

 

फिर  भी  हम  संघर्ष करेंगे

महारथी  की  भांति  लड़ेंगे

धर्मराज भी विचलित होंगे

तुझे   मारते    हुए    मरेंगे

 

मर के फिर ज़िंदा  होंगे हम

देख  तुझे  होंगे  केवल गम

हम  मनुष्य  देवों से जिद्दी

अमर  रहेंगे   कीर्ति के दम

 

पवन तिवारी

०९/०४/२०२१

 

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