मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

प्रेम में प्रतिकार कैसा

प्रेम में चाहत प्रथा है

जाति का आधार कैसा  


प्रेम में  प्रतिकार कैसा

और उपसंहार कैसा

प्रेम तो शाश्वत रहा है

प्रेम में उपकार कैसा

 

प्रेम तो केवल समर्पण

प्रेम में आभार कैसा

 

प्रेम सुंदर सर्जना है

स्वार्थ की ही वर्जना है

प्रेम में विश्वास ही सब

गौण इसमें गर्जना है

 

सच्चे प्रेमी जानते हैं

करना है व्यवहार कैसा

 

प्रेम षड्यंत्रों से भागे

प्रेम तो प्रतिक्षण ही जागे

प्रेम में ठहराव चाहिए

जो न समझे वे अभागे

 

प्रेम में निर्माण केवल

प्रेम में संहार कैसा

 

प्रेम हिय से सोचना है

 शेष तो आलोचना है

इसमें बाधाएं बहुत हैं

प्रेम से ही मोचना है

 

प्रेम में कर्तव्य केवल

फिर कहो अधिकार कैसा

 

पवन तिवारी

२७/०३/२०२१

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