मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

प्रति प्रात ही पंछी चहकते

प्रति प्रात ही पंछी चहकते

और झोंके भी बहकते

भानु भी प्रतिदिन हैं आते

पुष्प भी प्रतिदिन महकते

 

 

पवन भी चलता निरंतर

रात्रि में ना कोई अंतर

शीत, वर्षा, ग्रीष्म आती

इनको रोके कौन जंतर

 

 

अब भी पर्वत कुछ न कहता

सारी पीड़ाओं को सहता  

शशि था जैसा वैसा ही है

अब भी घटता बढ़ता रहता

 

 

दुख हजारों सह रही हैं

फिर भी नदियां बह रही हैं

केलों से करुणा नहीं है

बेरें अब भी कह रही हैं

 

 

तू भी बढ़ता चल चला चल

देख सरिता का यह कल कल

समय को रुकते हैं देखा

चलता रहता ही है पल-पल

 

 

कर्म में विश्वास रख तू

दृढ़ता से हर चाप रख तू

ध्येय होना सिद्ध निश्चित

स्वयं से बस आस रख तू

 

पवन तिवारी

२८/०३/२०२१

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