शनिवार, 16 अप्रैल 2022

जब भी तुमको देखूँ प्रिय

जब भी तुमको देखूँ प्रिय

मन में इक गीत उभरता है

मिलता हूँ तो हिय में मेरे

धीरे से रस भरता है

 

पथ से जाते देख तुम्हें

तृण भी कुछ नृत्य सा करते हैं

पंछी भी तुम्हें निहार वृक्ष से

लम्बी साँसे भरते हैं

 

पवन तुम्हारे आँचल को

अक्सर ही छेड़ा करता है

नयन तुम्हारा देख प्रिये

अब तो मदिरा भी डरता है

 

भौंरे तुम्हें देख के मंडराते

पूरी उपवन सी लगती हो

जिस भौंरे पर भी दृष्टि पड़े

क्षण में उसका हिय ठगती हो

 

कितने लोग प्रतीक्षा करते

सपनें में केवल तुम आओ

ऐसा रूप कहूँ क्या अद्भुत

इतने क़हर रूप से ढाओ

 

रूप क्षणिक आकर्षण है प्रिय

अपनी उर  से  नातेदारी

प्रणय निवेदन प्रथम व अंतिम

कहो प्रिये अब तुम्हरी बारी

 

पवन तिवारी

०२/०४/२०२१

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