शनिवार, 2 अप्रैल 2022

जिसके लिए ही सजते धजते

जिसके लिए ही सजते धजते

जिसके लिए ही सब कुछ तजते

वे ही जब तजते हैं तुमको

तब हिय के बारह हैं बजते  

 

इसलिए समन्वय सदा रखो

हित और अनहित सब सोच भखो

सम्बंध न त्याजो इक के लिए

सबमें थोड़ा सा स्नेह चखो

 

कब कौन कहाँ काम आ जाये

किसका स्वर किसको भा जाये

है भाग्य बहुत ही मायावी

निर्धन नरेश सा छा जाये

 

मित्रता की खिड़की खुली रखो

नीयत की आँखें धुली रखो

बिगड़ी बातें बन जायेंगी

भाषा भी नपी तुली रखो

 

पवन तिवारी

०६/०२/२०२१  

 

 

 

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