गुरुवार, 27 जनवरी 2022

अपनी कहानियों के तो कथ्य बोलते हैं

अपनी  कहानियों  के  तो  कथ्य  बोलते  हैं 

कुछ खुद नहीं है कहना सब तथ्य बोलते  हैं

लहज़ा  बता  रहा  है,  हैं  क्या   बोल  रहे  

इक आप कह  रहे  कि  वो सत्य  बोलते हैं

 

जिनको कहे हैं  स्थिर हर द्वार डोलते हैं

वो आदमी  अलग हैं  चुपचाप बोलते हैं

कुछ को समझने  में लग  जाता ज़माना

सारी ही रस्सियों के कुछ गाँठ खोलते हैं

 

रो - रो के  सही  हाल सुनाते जरुर हैं

आओ कि न आओ जी बुलाते जरूर है

कैसे   भी  हैं, पर  हैं, पक्के   वसूल   के

कि  मारने से  पहले खिलाते  जरुर हैं

 

पवन तिवारी

संवाद- ७७१८०८०९७८

२७/११/२०२०

   

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें