रविवार, 24 अक्टूबर 2021

उसने ख़ुशबू कहा

उसने ख़ुशबू  कहा  चंदा कहा  गुलाब कहा

फिर भी मैं चुप रहा तो उसने लाजवाब कहा

 

मैं ज़रा ख़ुश हुआ तो प्यार का वरक बोला

उसने रोका मुझे और इश्क की क़िताब कहा

 

जब भी मिलता था कसीदे उसी के पढ़ता था

कल  वो  नाराज था बेसाख्ता  ख़राब  कहा

 

आज उसकी अदा ने बोल दिया वो भी मिली

मुझको  देखा  कि मुझे  देखते  ज़नाब कहा

 

ये बहुत खुश  था जिसे  रोज चाँद कहता था

आज  धीरे  से उसने  इसको  आफ़ताब कहा

 

पवन तिवारी

संवाद – ८/०४/२०२१  

ऋतु शीत की आने वाली है

हो रहा वायु  अन्तस् शीतल, ऋतु  वर्षा जाने वाली है

कुहरा थोड़ा,थोड़ी ओस बढ़ी,ऋतु शीत की आने वाली है

पंखों की जगह लागे कम्बल नये मौसम की तरुणाई है

अब गये पसीने के मौसम नयी रुत अलाव की आयी है

 

सब थे गर्मी से भाग रहे अब सबको गर्म-गर्म चहिए

फले तो कहीं सो जाते थे अब बिस्तर नर्म-नर्म चहिए

पहले शीतल जल मांगते थे अब तो जल गर्म-गर्म चहिये

मुँह खोलो भाप निकलती है कमरा भी गर्म-गर्म चहिये

 

फैशन में हुए जो अधनंगे उनको भी बदन ढके चहिये

ऐसी प्रकृति ऋतु माया है प्रभु की माया को क्या कहिये

अब जो खाओ अब जो पहनो जाड़े की गज़ब कहानी है

मासूम बड़ी लगती ये ऋतु, ये ऋतु ऋतुओं की रानी है

 

करती विपन्न पर जुल्म भी ये, ये रानी की मनमानी है

गुण के संग कुछ अवगुण भी हैं ये वायु की भी दीवानी है

इसका चरित्र भी उठा गिरा  सुखदायी  भी  दुखदायी  भी

निर्बल पर अत्याचार  करे  निर्धन  के  लिए  हरजाई भी   

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

०६/१०/२०२१

 

कौन कहता है अब दिल हमारा है

कौन कहता है अब दिल हमारा है

ये किसी और दिल का सहारा रहा

लूट कर ले गया पूरे  अधिकार से

रूह  जाने  से  तन  बेसहारा रहा

 

कुछ हमारा रहा कुछ तुम्हारा रहा

दोनों का आधा आधा किनारा रहा

साथ में  हँसते हैं  साथ में रोते हैं

अपना  अंदाज  थोड़ा  आवारा रहा

 

चाँद कुछ ही दिनों  तक सितारा रहा

आसमां कुछ दिनों तक ही प्यारा रहा

प्यार को अपने छत पे जो ले आया मैं

चाँद  तारों  का  फीका   नज़ारा रहा

 

यूँ  ख़ुमारी  रही  यूँ  असर  भी रहा

ऐसे सपनों में कुछ दिन बसर भी रहा

बाद में यदि  सम्भाले गृहस्ती न तुम

सबसे त्रासद  इशक  का हसर भी रहा

 

पवन तिवारी

संवाद- ७७१८०८०९७८

१७/०४/२०२१  

शनिवार, 23 अक्टूबर 2021

अच्छे लोगों की यादें

अच्छे लोगों की यादें भी थाती होती हैं

उनकी बातें प्रेरक दीपक बाती होती हैं

स्वाभाविक लेखक जो लिखते हिय से लिखते हैं

उनकी लेखनी पढ़ो तो जैसे पाती होती है

 

लोग यहीं रहते हैं केवल देह चली जाती है

कर्मों के आधार पे उनकी कीर्ति छली जाती है

मरने के ही बाद व्यक्ति का मूल्याँकन होता है

विस्मृत करता है जग या फिर याद पली जाती है

 

जीते जी इतिहास पुरुष बन जाना दुर्लभ होता है

जितना पाता है उतना ही जाते - जाते खोता है

भौतिक सारा मिट जाता है एक कीर्ति जो टिकती है

बिना स्वार्थ के जग में किसको कौन कहाँ तक ढोता है

 

याद से बोना, जो भी बोना, जो बोता वो पाता है

वैसा ही बनता मन उसका जैसा अन्न जो खाता है

चरित बचाना, चरित बढ़ाना, अपने सद्कर्मों पर है

बहुतों की निंदा होती है, कम को ही जग गाता है

 

( प्रिय मित्र स्व.राधाकृष्ण चतुर्वेदी ‘अबोध’ जी को याद करते हुए)

पवन तिवारी

संवाद- ७७१८०८०९७८

०३/१०/२०२०          

देसी परिधान

वो जो मुझे धोती कुर्ता में देखकर

बनाते हैं मुँह,

जताते हैं आँखों से आपत्ति

किसी चिड़िया घर की

समझ बैठे हैं वस्तु

आदिमानव तक समझने के भाव

उभर आते हैं

उनके चहरे पर

जो कोट,टी शर्ट, बूशर्ट या

घुटने से कम तक की

पहनते हैं जाँघिया

बाँधते हैं चोटियाँ

शौक में पहनते हैं

कटे-फटे वस्त्र

उन्हें क्या पता जब भी मैं

कुर्ता-धोती पहनकर

किसी सम्मेलन या

समारोह में जाता हूँ

भरा रहता हूँ

आत्मविश्वास से !क्योंकि

मुझे लगता है

इस धोती कुर्ते में

केवल मैं नहीं हूँ

बल्कि, इसमें है

मेरे बाबू जी का स्वाभिमान !

उनका आशीष और

वे चल रहे हैं मेरे साथ

यह धोती – कुर्ता मात्र वस्त्र

या आवरण नहीं है

यह प्रतीक है मेरे बाबू जी का !

यह है उनके होने का आभास

इसलिए मुझे इसे धारण करने में

केवल और केवल

होता है गर्व !

 

पवन तिवारी

०४/१०/२०२० 

संवाद – ७७१८०८०९७८

 

तुम परेशान हो तो, सुनो

तुम परेशान हो तो, सुनो

तुम ये जो रोज

बाहर-बाहर घूमते हो

बाहर ये जो

खूब बातें करते हो, फिर भी

परेशान ही रहते हो तो सुनो

एक निःशुल्क

औषधि बताता हूँ

अब तुम बाहर के बदले

खुद के अंदर घूमने का

प्रयास करो और हाँ,

स्वयं के लिए निकालो समय

और खुद करो बातें भरपूर

तुम जरूर ठीक हो जाओगे

 

 

पवन तिवारी

संवाद- ७७१८०८०९७८

०४/१०/२०२०

कान्हा जनम (कजली)

कान्हा जन्म लिए काल की कोठरिया में

रात अंधियारिया में ना

 

कान्हा जन्में हैं जब,

पहरेदार सोये तब

ताला खुल गया है मथुरा नगरिया में

रात अंधियारिया में ना

 

पहरेदार सोये जब

ताला खुल गया है तब

चमत्कार हुआ कारा की कोठरिया में

रात अंधियारिया में ना

 

हुई आकाशवाणी

सुनो देवकी प्यारी

पूत ले जाओ गोकुला नगरिया में

रात अंधियारिया में ना

 

जाओ नन्द जी के द्वार

हुई बेटी सुकुमारि

उसे ले आओ मथुरा की जेलिया में

रात अंधियारिया में ना

 

चले वसुदेव जब

बरखा बढ़ गयी है तब

भीगते ही चले मथुरा की डगरिया में

रात अंधियारिया में ना

 

पहुंचे जमुना जी के तीर

उनका बढ़ने लगा नीर

शेषनाग ढके कान्हा को पनियां में

रात अंधियारिया में ना

 

पहुँचे नन्द जी के द्वार

किये अंतिम दुलार

बिटिया ले आये कंस की नगरिया में

रात अंधियारिया में ना

 

बसुदेव आये जब

पहरेदार जागे तब

बिटिया रोने लगी भोर की पहरिया में

 रात अंधियारिया में ना

 

कंस आया फटाफट

कन्या उठा लिया झट

कन्या छूट गयी पहुँची अकसिया में

रात अंधियारिया में ना

 

 

कन्या बोली सुन रे कंस

तेरा होगा विध्वंस

तेरा काल तो है गोकुला नगरिया में

रात अंधियारिया में ना

 

पवन तिवारी 

सम्वाद – ७७१८०८०९७८

०६/१०/२०२०


( यह रचना १९९९ में लिखी गयी थी,किन्तु रचना खो जाने के कारण २२ साल बाद स्मृतियों के आधार पर पुनर्लेखन )

जय जय जय उत्तर प्रदेश हे !

जीवन संस्कृति के नरेश हे, जय जय जय उत्तर प्रदेश हे.

धर्म ध्वजा की कीर्ति शेष हे, जय जय जय उत्तर प्रदेश हे.

 

पावन  सरयू  यमुना  गंगा, काशी मथुरा  कौशल संगा.

युग  का  नगर  बनारस  चंगा, तुलसी सूर कबीर रंगा.

प्रेमचंद   प्रासाद   निराला,  भारतेंदु   महादेवी  आला.

कथक कहरवा कजली वाला, लोक जहाँ जीवन की माला.

 

नैमिष सारनाथ  संगम हैं, चित्रकूट  विन्ध्याचल  हम हैं.

शेखर  मंगल पांडे हम हैं, लक्ष्मीबाई   बिस्मिल  हम हैं.

भोजपुरी  अवधी  बुन्देली, कन्नौजी  हिंदी  की   सहेली.

सब  प्रदेश  भर  खेलें होली, नटखट  उसमें बड़ी बघेली.

 

हम बढ़ते भारत  के हैं कल, पंथ पथिक बहु किन्तु एक हल.

सत्य सनातन का यह  स्थल, बढ़ता  भारत  का इससे बल.

हम विभूतियों  के  प्रदेश के, हम  किसान अगुआ  प्रदेश के.

हैं  महात्म्य  अनगिन प्रदेश के, गर्व है हम  उत्तर प्रदेश के.

 

पवन तिवारी

सम्वाद – ७७१८०८०९७८

तुम चाहते हो

तुम चाहते हो गैरों  का सदमा बना रहे

अपना भी  बुरा होगा  हौसला बना रहे

तेरी दुश्मनी ने मुझको रखा सजग सदा

प्रभु से है प्रार्थना  कि सलामत बना रहे

 

धोखे ने मुझको ज़िंदगी जीना सिखा दिया

थोड़ा सा  ज़िंदगी में भी धोखा  बना  रहे

संघर्ष   सफलता  का  है  मूल्य   बताता

थोड़ा  सा  मुश्किलों  से  वास्ता  बना रहे

 

अपनों से प्यार होना  बिलकुल है मुनासिब

गैरों  से  भी  थोड़ा  सा  राबता बना  रहे

हँसना भी एक हद तक  अच्छा  लगे पवन

रोने का भी  मज़ा  है  ज़रा  सा  बना  रहे 

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

७/१०/२०२०