शनिवार, 18 सितंबर 2021

रोते हँसते गुजार देते हैं

रोते हँसते गुजार देते हैं

लोग ताने हजार देते हैं

नफरतें फैली जहाँ भर में हैं

किन्तु कुछ हैं जो प्यार देते हैं

 

कुछ तो हक़ को ही मार देते हैं

और कुछ जो उधार देते हैं

दुःख में भी आते हँसाने वाले

दोस्त सब कुछ ही वार देते हैं

 

कुछ हँसी से ही तार देते हैं

मिलते ही कुछ निखार देते हैं

कुछ बिना बात के बिगड़ते हैं

कुछ जो आकर सँवार देते हैं  

 

कुछ जो बनती बिगाड़ देते हैं

कुछ  बसे  को  उजाड़ देते हैं

कुछ जो मामूली से हैं दिखते मगर

अच्छे - अच्छों को झाड़ देते हैं

 

लोग  कैसे  ईनाम  देते  हैं

हमारे काम पे कोई और नाम देते हैं

कृषक मज़बूर देख कर बनियें

फसल के घटिया दाम देते हैं

 

सूर्य तो  यूँ ही  घाम देते हैं

लोग मतलब से काम देते हैं

आदमी प्रकृति में अंतर यही है

स्वार्थ निस्स्वार्थ धाम देते हैं

 

ज़िन्दगी को यूँ जाम देते हैं

उम्र यूँ  ही  तमाम  देते हैं

कट ही जाती है बुरी अच्छी ये

आओ गाकर सलाम देते हैं

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

१३/०९/२०२०  

 

 

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