मंगलवार, 21 सितंबर 2021

प्रेम को क्रीड़ा समझ बैठे तुम

प्रेम को क्रीड़ा समझ बैठे तुम

सत्य को रोड़ा समझ बैठे तुम

तुमको देखा तो बस तुम्हें देखा

मनुज को घोड़ा समझ बैठे तुम

 

अश्रु तुमको सदा विनोद लगे

गैर की बाँहों में प्रमोद लगे

लुटा के जिसपे खुद को गर्व किया

और उसको कोई मृदुल सरोद लगे

 

प्रेम में तुमने छल किया ऐसे  

रक्त हिय का हो पिस रहा जैसे

छल का घृत यज्ञ में उड़ेला यूँ

सह रहा अग्नि को ह्रदय कैसे

 

तुम्हारा छल ही देगा त्रास तुम्हें

करेगा रोज - रोज ह्रास तुम्हें

गलोगे दुःख में तुम भी हिम की तरह

धूर्त का बनना होगा ग्रास तुम्हें

 

विलम्ब होगा किन्तु बिलाखोगे

खो के सब अंत में ही समझोगे

यही विलम्ब  बड़ा  दुःख सबसे

प्रेम की आंच से ही  झुलासोगे

 

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

१९/०९/२०२०     

 

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