शुक्रवार, 20 अगस्त 2021

जितनी अधिक पीर पाओगे

जितनी  अधिक पीर पाओगे

जितने अधिक छले जाओगे

इन सबसे यदि सीख सके तो

सही  दिशा  में  ही आओगे

 

लम्बा  बहुत  हुआ संघर्ष है

दुःख  में  बीता कई  वर्ष है

डिगे नहीं हो फिर भी पथ से

तो समझो फिर निकट हर्ष है

 

बाधायें  जीवन  की  परीक्षा

सीख सको  तो  है ये शिक्षा

इनका  जो  उपयोग सही हो

पूरी   होगी   सारी   इच्छा

 

जग भर से मिल सकती भिक्षा

उद्यम के लिए  धैर्य  प्रतीक्षा

जो  सौभाग्य  गुरु  मिल पाये

फिर मिल पाये जीवन दीक्षा

 

दीक्षित होकर जग जाओगे

जीत सभी का मन पाओगे

खुद आयेगी समृद्धि चलकर

आभा से जग  में  छाओगे  

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

३/०९/२०२०

सबसे पहले खुद का जाना

सबसे पहले  खुद का जाना

प्रतिभाशाली  हूँ  यह माना

फिर ठोकर और दुत्कारों को

किया  ठिकाने  मैंने  ठाना

 

लोगों  ने   सौ  बार गिराया

खुद  को सौ सौ  बार उठाया

जिस–जिस ने अपमान किया था

उस - उस  ने सम्मान कराया

 

पागल कितनों को लगता था

सपनों में भी  मैं जगता था

मन की  सुनता  बढ़ता रहता

कभी - कभी खुद को ठगता था

 

पर अपनी धुन का पक्का था

घूम  रहा  मेरा  चक्का  था

था अगाध विश्वास स्वयं पर

मैं अपनी जिद का पक्का था

 

इक दिन उससे ज्यादा मिल गया

तन मन दोनों संग में खिल गया

श्रम  विश्वास  की  जीत हुई थी

निंदा  का  मस्तिष्क  हिल  गया

 

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

४/०९/२०२०

 

  

 

 

शुक्रवार, 13 अगस्त 2021

अब तुम्हारे साथ की

अब तुम्हारे साथ की  मुझको नहीं चाहत प्रिये है

अब तुम्हारे कदमों की उर चाहे ना आहट प्रिये है

जब तुम्हारी थी प्रतीक्षा नयन झर झर झर रहे थे

तब तुम्हारे  व्यंग्य थे, ताने थे, अब राहत प्रिये है

 

वो समय  तुम  भूल बैठे, जब  तुम्हारे  पग  पखारे

हाथ जोड़े  हम खड़े थे, कितने  दिन  द्वारे  तुम्हारे

तुम निकम्मा कहके झट से द्वार को थे बंद कर लिए

पल वो पावन जा चुके हैं तुम पे जब हम हिय थे हारे

 

जब तुम्हीं पर तन से मन तक हो गया सब था समर्पित

उर के  उपवन  पुष्प तुम पर  कर दिए थे सारे अर्पित

बिंहस कर आगे  बढ़े थे पग से उनको कुचल  कर तुम

आज  भी  स्मरण  वो क्षण, था तुम्हारा  चेहरा  दर्पित

 

वो समर्पण, प्रेम वो, सबको  समय  ने  खा लिया  

जो दिए  थे  घाव  तुमने उसका मलहम पा लिया

दूर जाता  जा  रहा हूँ, अब  तुम्हारी  यादों से भी

होता पागल इससे पहले खुद को  था  समझा लिया

 

भाव पूजा सा जो निर्मल, प्रेम के बिन मर गया था

प्रेम का भी देवता, थक - हार करके  घर  गया था

धन की बाँहों में गये थे, याद है, मुझे छोड़ कर तुम

अब नहीं वो प्रेम है, वो प्रेम,  तब  ही मर गया था

 

ये पवन अब दूसरा है, इसको  पा  सकते  नहीं हो

बंद हो गये प्रेम के पट, हिय में जा सकते नहीं हो

मन है दूषित तन है दूषित सोच भी दूषित लिए हो

स्वार्थों  का  अस्त्र  लेकर प्रेम पा सकते  नहीं  हो

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

31/08/2020   

तुमने कितने गीत सुनाये

दर्द के आगे भूल गये सब क्या-क्या कहाँ-कहाँ पर गाये

तुमको क्या कुछ याद रहा है, तुमने कितने गीत सुनाये

 

पीड़ाएँ जब हद से बढ़ गयीं, तुमने उस पर शब्द सजाये

घाव लगे रिसने  तेजी से, उनको  तब  तुम गीत बनाये

घाव - घाव को  शब्द दे दिया, तड़पन को संगीत बनाये

तुमको क्या कुछ  याद रहा है, तुमने कितने गीत सुनाये

 

सारे ताने, तान बना दिये, और फब्तियाँ गान बना दिये

अपमानों को स्वर में ढाला, गीतों को सम्मान बना दिये

कैसी – कैसी  चोट  मिली  थी, कैसे – कैसे  धोखे पाये

तुमको क्या कुछ याद रहा है, तुमने कितने गीत सुनाये

 

ज्यादातर परछाईं  निकले  अपने  तो  हरजाई  निकले

बारी – बारी  हाथ छुड़ाये, कितने  किरदारों  से  फिसले

थोड़े से जो कुछ आये थे, वे भी थे  अपना  दुःख  लाये   

तुमको क्या कुछ याद नहीं है, तुमने कितने गीत सुनाये

 

 

 

 

किसने  कब - कब कैसे  तारा, सबने  बारी - बारी मारा

पी  जाता मैं सारे  आँसू, पर  सारा  ही  निकला  खारा

रो-रो  कर जो शब्द लिखे थे गा - गा कर थे उन्हें सुनाये

तुमको क्या कुछ याद नहीं है, तुमने  कितने  गीत सुनाये

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

०१/०९/२०२०      

 

 

गुरुवार, 12 अगस्त 2021

यूँ निरर्थक हँस चुके हो

यूँ निरर्थक हँस चुके  हो  तो  कहो  कुछ बात कर लूँ

रचना अपमानित है बैठी उसकी सुन कुछ बात कर लूँ

कविता कविता  कर  रहे हो क्या मिले हो कविता से

ओ जो  अधनंगी  पड़ी है कविता है कुछ बात कर लूँ

 

हो गयी हो मसखरी तो काम की कुछ बात कर लूँ

हा हा हू हू छोड़ के साहित्य  पर कुछ बात कर लूँ

शारदा  के पुत्र  हो  तो  तुम  कोई रचना सुनाओ

चुप हो समझा, चाहते कुछ चुटकुलों पर बात कर लूँ

 

चाहता हूँ आज मैं  भी  मंच से कुछ बात कर लूँ

कविता नौटंकी नहीं है इस पे भी कुछ बात कर लूँ

चाहो  जो  तुम  वो  छपे  संकेत ये  अच्छा नहीं

चाहते हो मैं  लिफाफा  देखकर  कुछ  बात कर लूँ

 

बिकने  वाले और हैं  विद्रोह  की  कुछ बात कर लूँ

सत्य को भी है जगह तो फिर कहो कुछ बात कर लूँ

अब न कविता नग्न होगी  ना ही ये अभिनय करेगी

तुम हो संयोजक चलो कवियों से ही कुछ बात कर लूँ

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

अणु डाक – poetpawan50@gmail.com  

३०/०८/२०२०

 

कुछ अपने लिए जीते मरते

कुछ अपने लिए  जीते मरते

कुछ दूजों  के  लिये गाते हैं

कुछ सुख में  भी रोते  रहते

कुछ दुःख में  भी मुस्काते हैं

 

कुछ स्वारथ  देख  चले आते

कुछ  स्वार्थ  देख के जाते हैं

कुछ  भाग - भाग के हैं जाते

कुछ  बिन  मांगे  ही  पाते हैं

 

कुछ  दूजों  पर  जीते  खाते

कुछ ख़ुद ही कमा के खाते हैं

कुछ  जलते  हैं अपनों से ही

कुछ  गैरों  को  भी  भाते हैं

 

जन दुनिया में बहु  भांति रहे

जो   जैसे   वैसे    पाते  हैं

जिनको अधिंयारा प्रिय लगता

वे  रात  में  अक्सर  आते हैं

 

जिनको जीवन से प्रेम पवन

वे  जीवन को  पा  जाते है

जो सत्य के सहचर रहे सदा

प्रभु  उनको  गले  लगाते हैं

 

पवन तिवारी

सम्वाद – ७७१८०८०९७८  

   

 

  

मंगलवार, 10 अगस्त 2021

मेरी गली धूल मेरा द्वार मेरी माटी

मेरी गली धूल मेरा द्वार मेरी माटी

मेरे खेत बाग़ ये तालाब मेरी थाती

ये नीम पीपल ये महुआ ये बरगद

माँ भाभी बाबू जी जीवन की बाती

 

त्योहार की लड़ियाँ जीवन बनाती

होली  दीवाली  उमंगे   ले  आती

धोती कुर्ते  का  सलीका  है प्यारा

शादी में हँस हँस के गाली दी जाती

 

नून तेल  चोखा  से बन जाये  बात

दो  जोड़ी कपड़े में निभ  जाये साथ

मेल  कराती  है  बेर  आम  इमली   

नौटंकी  देखन  में  कट  जाये  रात

 

एक  ही रजाई  में तीन - तीन लोग

ठाकुर जी को  लागे  गुड़  वाला भोग

गाँव  भर लगे  है चाचा भईया, काकी

सुंदर कितना है  जी रिश्तों  का  जोग

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

अणु डाक – poetpawan50@gmail.com 

 

सोमवार, 9 अगस्त 2021

बादल मस्ती में रहते हैं


 बादल  मस्ती  में  रहते हैं

नभ की  बस्ती में रहते हैं

जग  भीगने से डरता है वे

जल  की कश्ती में रहते हैं

 

जिनसे जीवन के रथ चलते

उन पर वे आरूढ़  हो चलते

अपने  मन  के  राजा हैं वे

सूरज ढंकते  चलते – चलते

 

थिर  ये  कभी  नहीं रहते हैं

नदी  के  जैसे  ये  बहते  हैं

इनसे   सीखें  जीवन  जीना

चलते  रहो   यही  कहते  हैं

 

अपना  सब  धरती  को  देते

बदले  में  कुछ  कभी न लेते

परहित  में  भटका  करते  हैं

अम्बर  में   नइया  खेते  हैं

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

अणु डाक – poetpawan50@gmail.com  

28/08/2020