शुक्रवार, 13 अगस्त 2021

अब तुम्हारे साथ की

अब तुम्हारे साथ की  मुझको नहीं चाहत प्रिये है

अब तुम्हारे कदमों की उर चाहे ना आहट प्रिये है

जब तुम्हारी थी प्रतीक्षा नयन झर झर झर रहे थे

तब तुम्हारे  व्यंग्य थे, ताने थे, अब राहत प्रिये है

 

वो समय  तुम  भूल बैठे, जब  तुम्हारे  पग  पखारे

हाथ जोड़े  हम खड़े थे, कितने  दिन  द्वारे  तुम्हारे

तुम निकम्मा कहके झट से द्वार को थे बंद कर लिए

पल वो पावन जा चुके हैं तुम पे जब हम हिय थे हारे

 

जब तुम्हीं पर तन से मन तक हो गया सब था समर्पित

उर के  उपवन  पुष्प तुम पर  कर दिए थे सारे अर्पित

बिंहस कर आगे  बढ़े थे पग से उनको कुचल  कर तुम

आज  भी  स्मरण  वो क्षण, था तुम्हारा  चेहरा  दर्पित

 

वो समर्पण, प्रेम वो, सबको  समय  ने  खा लिया  

जो दिए  थे  घाव  तुमने उसका मलहम पा लिया

दूर जाता  जा  रहा हूँ, अब  तुम्हारी  यादों से भी

होता पागल इससे पहले खुद को  था  समझा लिया

 

भाव पूजा सा जो निर्मल, प्रेम के बिन मर गया था

प्रेम का भी देवता, थक - हार करके  घर  गया था

धन की बाँहों में गये थे, याद है, मुझे छोड़ कर तुम

अब नहीं वो प्रेम है, वो प्रेम,  तब  ही मर गया था

 

ये पवन अब दूसरा है, इसको  पा  सकते  नहीं हो

बंद हो गये प्रेम के पट, हिय में जा सकते नहीं हो

मन है दूषित तन है दूषित सोच भी दूषित लिए हो

स्वार्थों  का  अस्त्र  लेकर प्रेम पा सकते  नहीं  हो

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

31/08/2020   

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