शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

कैसे – कैसे लोग हमारा जी बहलायेंगे

कैसे – कैसे  लोग  हमारा  जी   बहलायेंगे

कविता गीत के नाम पे हमको शोर सुनायेंगे

व्यंग्य विनोद की  आड़ लिए वे  ऐसे आयेंगे

और विदूषक जैसा अभिनय कर दिखलायेंगे

 

स को श और त्रि को त्रू कहकर समझायेंगे

कलयुग में ये लोग ही बड़े कवि कहलायेंगे

कविता होगी तीन मिनट और भूमिका बारह की

ऐसे ही निज नाम के आगे राष्ट्रकवि लिखवायेंगे

 

हाथ झटक कर पैर पटक कर कुछ बतलायेंगे

और  वीर  को  ओज  बताकर  वे चिल्लायेंगे

संचालक  तो नोक - झोंक में ही खप जायेंगे

कवयित्री  के  पल्लू  से  कवि  मारे  जायेंगे

 

नेपाली,  नीरज  व्  सनेही  यूँ  बन  पायेंगे

श्यामनारायण  दिनकर  को ये धूल  चटायेंगे

लज्जित होंगे पन्त निराला और सुभद्रा रोयेंगी

पर ये  कविता  के  व्यापारी झूम  के गायेंगे  

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

२०/०८/२०२०

 

 

 

गुरुवार, 29 जुलाई 2021

वो गये यों

वो गये यों, यों भी कोई जाता है

बेवफ़ाई करके भी धमकाता है

मानकर मैं भाग्य सब कुछ झेल लूँगा

किन्तु यों यादें कोई भड़काता है

 

प्रेम में ही खतरे सबसे ज्यादा हैं

पूरे होकर भी हम आधा आधा हैं

एक की  गलती को  भोगे दूसरा

ऐसे  में एक  दूसरे  को बाधा हैं

 

प्रेम में दुःख सब दुखों पर भारी है

प्रे म की  तलवार  भी दो धारी है

दोनों  छोरो  से  बनी निष्ठा रही

फिर तो चलना प्रेम की शुभ पारी है

 

प्रेम में विश्वास का ना ध्वंस हो

हो समर्पण पूरा ना कि अंश हो

इनमें से कुछ भी डिगा या टूटा तो

प्रेम फिर खुद ही कहे कि विध्वंस हो

 

प्रेम में यदि हो सके पड़ना नहीं

पड़ गये तो प्रेम से डरना नहीं

कैसे भी हालात हों निज को बचा

प्रेम खुद से ज्यादा तुम करना नहीं

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८  

 

      

विडम्बना कैसी-कैसी

विडम्बना कैसी-कैसी है दुख का ना कोई छोर है

राष्ट्र बना है जिनके कारण उनका ना कोई और है

धरा को उलट-पुलट करके के जो भरते उदर सभी का

उनकी ही अब बात अनसुनी दुखता पोर ही पोर है

 

नारों में,खेतों में, किनारों, में चर्चा उनकी

उनकी कोई किन्तु कभी सरकार नहीं सुनती

असली देश गाँव में बसता सबको यही बताते हैं

किन्तु किसानों की मानव में होती नहीं कभी गिनती

 

किसानों की मेहनत में हिस्सा देश भर का है

दावा अनाज पर उसके जैसे अपने घर का है

मेहनत किसान की कमाई किसी और की

उसकी ही मलाई में उसका हिस्सा तर का है

 

इनकी मौत ख़ास नहीं, खबर नहीं बनती है

नेता अभिनेता की प्रेस में बड़ी छनती है

इनकी भी मौज मस्ती प्रथम पृष्ठ पर छपती

टीवी वाली दुनिया तो और ही कुछ गुनती है

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

१८/०८/२०२०  

 

 

मैंने धीरे – धीरे ही मन को समझा

मैंने धीरे – धीरे ही मन को समझा 

तुमने जल्दी-जल्दी ही धन को समझा

छोड़ मुझे तुम ही  सुविधा के दल गये 

इसीलिए हम दोनों के पथ बदल गये


 काश चरित से मेरे तुम यारी करते 

 साथ मेरे दो चार कदम यदि डग भरते 

 घाव तुम्हारे ह्रदय पर कभी नहीं पड़ते 

 सच का आँचल यदि धीरे सेही धरते 


 दूर रहा हूँ सुविधाओं के रोग से

 हुआ नहीं आकर्षित ढेरों भोग से 

 पथ जो बदला थोड़ा सा तुम कारण थे

 किन्तु कभी भी नहीं किसी के चारण थे 


लोभ में तुम थोड़ा-थोड़ा ही बिक गये 

हमीं अकेले ध्येय लिए बस टिक गये

पहुँचा हूँ जो आज शिखर के भाल पर 

ठहर गये हैं आँसू तुम्हरे गाल पर 


 कहा था तुमसे मन का सौदा मत करना 

द्रव्य से पावन तन को मैला मत करना 

सत्य का पथ दुर्गम है मगर जीत होगी 

 एक दिन समृद्धि तुम्हरी प्रबल मीत होगी 


 पवन तिवारी 

 संवाद – ७७१८०८०९७८ 

 १६/०८/२०२०

जिंदगी में कभी कुछ भी हो सकता है

जिंदगी में कभी कुछ भी हो सकता है 
 कोई हँसता अकस्मात रो सकता है 
 लोग बाहर की दुनिया में खोते बहुत 
 कोई अन्दर की दुनिया में खो सकता है 

 यूँ अचानक बहुत कुछ बदल जाता है 
 अपने उर से खिलौना निकल जाता है 
 दिल परेशान होकर सिसकता भी है
 जिस पर विश्वास हो वो ही छल जाता है 

 हर परिस्थिति में जीवन को स्वीकार लो 
 हार के, हार को, हँस के स्वीकार लो 
तब कहीं जिंदगी तुमको अपनाएगी 
त्रास या हर्ष हो सहज स्वीकार लो 

 ऐसे में लुट के भी तुम निखर जाओगे 
 शून्य में तारों जैसा बिखर जाओगे 
जग तुम्हें गायेगा तुमको पूजेगा भी
 छलियों के दिल में भी तुम उतर जाओगे 


 पवन तिवारी 

संवाद – ७७१८०८०९७८ 

 १६/०८/२०२०

बुधवार, 28 जुलाई 2021

आदमी से सम्वाद करना विशेष नहीं है

आदमी से सम्वाद करना विशेष नहीं है

मनुष्य बनने के लिए!

आदमी से सम्वाद करने से

श्रेष्ठ विकल्प है, उनसे सम्वाद करना-

जिनका सम्वाद मौन या

संकेत में होता है.

आदमी से अधिक सम्वाद

नदियों, वृक्षों, पक्षियों, पशुओं,

पैरों तले दबाने वाली दूब,

सर के ऊपर लेटी छप्पर या छत

पास में सीधी खड़ी दीवारों,

उठते बैठते चरमराती चारपाई,

कराहती,सिसकती ध्वनियों,

उड़ती तितलियों और

पिंजरे में बंद लोगों की

सम्वेदनाओं से सम्वाद आवश्यक है!

और हाँ, कभी मेड़, कीचड़

भिनभिनाती मक्खियों, कच्ची पगडण्डियों

उड़ती धूलों और

हेय दृष्टि से फेंक दिए गये कचरे एवं

घूर पर पड़े गोबर से भी सम्वाद करना !

साथ ही मिलना घूर पर उग आये

चाँद की तरह अमोले सहित

सितारे की तरह टिमटिमाते, प्यारे

दूसरे अनेक वनस्पतियों और

अनजाने पौधों से!

जो स्वयं की जिजीविषा और

प्रयास मात्र से घूर के ऊपर

अपना अस्तित्व निर्माण कर सके .

बिना की सहायता के!

उनसे कर सको तो, करना सम्वाद !

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

१४/०८/२०२०

 

 

  

मैं तो देसी ठेठ आदमी

मैं तो देसी ठेठ आदमी

कहीं गुज़ारा कर लूँगा

रोटी तो मिल ही जायेगी

जहाँ पसीना  श्रम दूँगा

 

चकाचौंध के इस जाले से

बोलो तुम कैसे निकलोगी

आखेटक के हाथ लगे तो

बोलो तुम  कैसे  डोलोगी

 

मुझको धक्का देती हो तुम

गाँव हमारा ये ज़िंदा है

सुविधाओं की आस नहीं है

गाँव का ये बासिन्दा है

 

तुम तो तितली महानगर की

इन नखरों का क्या होगा

किस पर रौब जमाओगी अब

अधिकारों का क्या होगा

 

मुझको ठोकर मार रही हो

ढेले सा चला जाऊँगा

मिटटी का बेटा हूँ हँस के

मिटटी में मिल जाऊँगा

 

तुम खुद को अप्सरा हो कहती

सुख सुविधा का क्या होगा

मैं था श्रमिक जा रहा हूँ अब

ऐश्वर्यों  का   क्या   होगा

 

मेरे दुःख तो गा लूँगा मैं

तेरे दुःख का क्या होगा

जब पूछेंगे देव प्रश्न तो

तेरा  उत्तर  क्या होगा

 

स्वाभिमान मेरी  थाती है

इसका  कोई  मोल  नहीं

मैं कोई वस्तु नहीं जो बिक लूँ

मेरा  उर  कोई ढोल नहीं

 

नगर तुझे ये छल जायेगा

तेरा वैभव गल जायेगा

जिस दिन काया धूमिल होगी

वक्त तेरा भी जल जायेगा

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

१३/०८/२०२०

  

  

ज़िन्दगी अपने ढंग से

ज़िन्दगी अपने ढंग से जिया कीजिये

थोड़ा - थोड़ा सही  पर नया कीजिये

ज़िन्दगी में हो अपने मुताबिक़ न सब

पर लगातार  हिय  से किया  कीजिये

 

प्रेम से जो मिला उसको ले लीजिये

जो है ज्यादा उसे थोड़ा दे दीजिये

ज़िन्दगी  आपसी प्रेम का नाम है

आपसी  प्रेम  में  आइये भीजिये

 

इसमें अच्छे बुरे लोग मिल जायेंगे

इसमें दुःख और सुख दोनों मिल जायेंगे

मिलना संतोष का थोड़ा मुश्किल है जी

खोज पाए उसे फिर तो खिल जायेंगे

 

दोस्ती थोड़ी सी हँसी से रखना तुम

दुःख ज्यादा नहीं थोड़ा सा चखना तुम

दोस्ती, धैर्य साहस से मत भूलना

झूठ को थोड़ी दूर से ही लखना तुम

 

ज़िन्दगी –ज़िन्दगी तब ही हो पाएगी

जब भी जायेगी खुशियों के संग जायेगी

वैसी मिल जायेगी चाहोगे जब भी जो

जिन्दगी आप के स्वर में ही गायेगी   

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

१३/०८/२०२०

मंगलवार, 27 जुलाई 2021

युवा साहित्यकार पवन तिवारी को ‘त्यागमूर्ति हिडिम्बा’ के लिए साहित्य चेतना सम्मान– 2021


 





मुंबई, युवा साहित्यकार पवन तिवारी के नये पौराणिक उपन्यास “त्यागमूर्ति हिडिम्बा” को साहित्य चेतना सम्मान वर्ष २०२१ के लिए चयनित किया गया है.यह सम्मान उन्हें

 शील साहित्य परिषद के एक भव्य समारोह में २० अक्तूबर २०२१ को जांजगीर, छत्तीसगढ़ में गौरवपूर्ण तरीके से प्रदान किया जाएगा.

ज्ञात हो कि राष्ट्रीय स्तर का सम्मान प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था शील साहित्य परिषद छत्तीसगढ़, प्रति वर्ष अनेक विधाओं में देश भर के रचनाकारों को प्रविष्टियों के आधार पर प्रदान करती है.पवन तिवारी गत २३ वर्षों से मुंबई जैसे महानगर में रहते हुए साहित्य साधना में रत हैं. इससे पहले उनके पहले उपन्यास अठन्नी वाले बाबू जी के लिए भी उन्हें महाराष्ट्र साहित्य अकादमी का जैनेन्द्र पुरस्कार मिल चुका है. उनके अब तक दो कथा संग्रह एवं दो उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं. एक कविता संग्रह काले अक्षर कवि और कविता प्रकाशन की प्रक्रिया में है.

त्यागमूर्ति हिडिम्बा [उपन्यास]
   कविता गीत ग़ज़ल, निबन्ध,कहानी,उपन्यास सहित अनेक विधाओं में लिखने वाले पवन तिवारी को अनेक मित्रों शुभचिंतकों ने बधाई एवं शुभकामना दी है. जिनमें वरिष्ठ समाजसेवी डॉ बाबूलाल सिंह, प्रसिद्द समाजसेवी एवं साहित्यकार अलका पाण्डेय, डॉ सतीश शुक्ल,वरिष्ठ अधिवक्ता दरम्यान सिंह बिष्ट, वरिष्ठ साहित्यकार हृदयेश मयंक,युवा कवि  अरविन्द पाण्डेय, चन्द्रिका व्यास, प्रकाशक राम कुमार, व्यंग्य कवि हरीश शर्मा यमदूत, अवधेश यादव, वरिष्ठ पत्रकार राकेश पाण्डेय, युवा साहित्यकार डॉ शिवम तिवारी, हिंदी प्रेमी प्रज्वल वागदरी, विदुषी साहित्यकार डॉ उषारानी राव सहित उनके पैत्रिक गाँव जहांगीरगंज स्थित अलाउद्दीनपुर गाँव में एवं आसपास के साहित्यकारों में ख़ुशी का माहौल है. स्थानीय साहित्यकार  उमाशंकर शुक्ल ‘दर्पण’, सम्पूर्णानन्द दुबे, लालबहादुर चौरसिया ‘लाल’, सौरभ त्रिपाठी, देवमणि त्रिपाठी ‘अंगार’,रामदरश पाण्डेय ‘विश्वासी’, मीरा त्रिपाठी  आदि ने हर्ष व्यक्त करते हुए बधाई दी है.

एक दिन आयेगा

एक दिन आयेगा फिर से मैं रोऊँगा

आँसुओं को मगर हँस के मैं धोऊंगा

आज गा ना सका गला रुँधने को है

एक दिन बिन कहे हँस के मैं गाऊँगा

 

दुःख तो खुद आया है खुशियाँ मैं लाऊँगा

लेके प्रतिभा को सुख के मैं घर जाऊँगा

देखते ही मुझे सुख भी खिल जाएगा

हर्ष को साथ में लेकर के मैं आऊँगा

 

कहने वाले कहें निज पे विश्वास है

ध्यान से देखिये सब मेरे पास है

धैर्य है, धर्म है, और दृढ़ता भी है

मुझको जग से नहीं स्व से ही आस है

 

आज जिनका है ले लें मगर कल मेरा

आज खट-पट है तो वक्त ने है घेरा

ये तो जीवन है होता रहा है सदा

कल मेरा होगा मेरा लगेगा डेरा

 

सारे दुःख, सारे संत्रास मंजूर हैं

सारे खुशियों के लक्षण बहुत दूर हैं

मगर देखा है बादल को घिरते हुए

ऐसे देखोगे तो पास में नूर है

 

हूँ बहुत खुश भी पीड़ा के घेरे में मैं

रोशनी आयेगी हूँ अँधेरे में मैं

भोर के पास हूँ इसका आभास हूँ

जग से जल्दी मिलूँगा सवेरे में मैं

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

१२/०८/२०२०