बुधवार, 28 जुलाई 2021

मैं तो देसी ठेठ आदमी

मैं तो देसी ठेठ आदमी

कहीं गुज़ारा कर लूँगा

रोटी तो मिल ही जायेगी

जहाँ पसीना  श्रम दूँगा

 

चकाचौंध के इस जाले से

बोलो तुम कैसे निकलोगी

आखेटक के हाथ लगे तो

बोलो तुम  कैसे  डोलोगी

 

मुझको धक्का देती हो तुम

गाँव हमारा ये ज़िंदा है

सुविधाओं की आस नहीं है

गाँव का ये बासिन्दा है

 

तुम तो तितली महानगर की

इन नखरों का क्या होगा

किस पर रौब जमाओगी अब

अधिकारों का क्या होगा

 

मुझको ठोकर मार रही हो

ढेले सा चला जाऊँगा

मिटटी का बेटा हूँ हँस के

मिटटी में मिल जाऊँगा

 

तुम खुद को अप्सरा हो कहती

सुख सुविधा का क्या होगा

मैं था श्रमिक जा रहा हूँ अब

ऐश्वर्यों  का   क्या   होगा

 

मेरे दुःख तो गा लूँगा मैं

तेरे दुःख का क्या होगा

जब पूछेंगे देव प्रश्न तो

तेरा  उत्तर  क्या होगा

 

स्वाभिमान मेरी  थाती है

इसका  कोई  मोल  नहीं

मैं कोई वस्तु नहीं जो बिक लूँ

मेरा  उर  कोई ढोल नहीं

 

नगर तुझे ये छल जायेगा

तेरा वैभव गल जायेगा

जिस दिन काया धूमिल होगी

वक्त तेरा भी जल जायेगा

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

१३/०८/२०२०

  

  

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