रविवार, 13 जून 2021

भटक रहा हूँ


 

भटक रहा हूँ मुझे प्रेम की तलाश है

एक सच्चे साथी की ही मुझको आस है

बहुत सारी बातें हैं इच्छाएं हैं अनंत

प्रेम भी तो पावन है उदात्त प्यास है

 

बदन की ही खुशबू में हर कोई मस्त है

उर के द्वार जाने से पहले ही पस्त है

चारो तरफ भोग दिखे जोग कहीं लुप्त है

यही देख-देख पुण्य प्रेम भी तो लस्त है

 

ऐसे समय में भी प्रेम खोजता हूँ मैं

थोड़ा-थोड़ा भटकने पर खुद को रोकता हूँ मैं

उर को समझाता हूँ नहीं समझता है पर

रुकता नहीं है किन्तु फिर भी रोकता हूँ मैं

 

थोड़ा सा प्रेम चखा धोखा बड़ा मिला

नाजुक से प्रेम से झटका कड़ा मिला

आगे बढ़ा जरा तो छल कपट झूठ मिले

फिर भी ये दिल अपने जिद पे अड़ा मिला

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८ 

२५/०७/२०२०   

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