रविवार, 13 जून 2021

जिसके संग सपने थे देखे

जिसके संग सपने थे देखे

उसने ही सपनों को मारा

वारा अपना जिस पर सब कुछ

उसके ही मैं छल से हारा

 

जो खुशियाँ उसे देना चाहा

उसका ही वो क़त्ल कर दिया

जिस हिय में था खुशियाँ रोपा

वो नैनों में आँसू भर दिया

 

हत्या जब विश्वास की होती

एक – एक धड़कन है रोती

प्रतिपल रोम कराह रहे हैं

काश, कि विष के बीज न बोती

 

प्रेम में जिसने दगा किया है

जीवन भर वो दुःख ही सिया है

दुःख का सुख बस क्षणिक रहा है

ऐसा तो घुट - घुट के जिया है  

 

पवन तिवारी

संवाद- ७७१८०८०९७८

२२/०७/२०२०

  

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