सोमवार, 24 मई 2021

भोर जो आकर खिड़की खोली

भोर जो आकर खिड़की खोली

सुबह ने फिर दरवाज़ा खोला

सारे पक्षी सोच रहे थे

पर पहले आ कागा बोला

 

सूरज की आहट पाते ही

अलसाया जग लगा डोलने

किरणों से जब भेंट हुई तो

सुमन पंखुड़ी लगे खोलने

 

पत्ता-पत्ता गीला करके

ओस की बूँदें लगी पसरने

घर से निकल के सारा ही जग

अपने काम से लगा बिखरने

 

अल्प समय में ही जग भर में

हँस कर सूरज लगा टहलने

यूँ सूरज को हंसते देखकर

बिटिया का मन लगा बहलने

 

बाऊ जी हमें सूरज चाहिए

कहकर बेटा लगा पुलकने

उसकी भोली बातें सुनकर

सारे लोग लगे हँसने

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

१५/६/२०२० अलाउद्दीनपुर

 

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