मंगलवार, 2 जून 2020

पतझड़ में फूल


पतझड़ में भी फूल खिले हैं
जंगल में भी  मीत मिले हैं
कभी-कभी कुछ लोगों को तो
गैरों से  भी  गिले  रहे हैं

रोना भी  सुख दे जाता है
गैर से भी मरहम पाता है
कुछ भी हो सकता है यहाँ पर
ये भी जीवन कहलाता है

अपने  कभी   पराये   होते
अपनों में ही  खुद  को खोते
मरुथल में भी झील मिली है
अपनों  से  खा  धोखा रोते

जीवन       तो    बहुरंगा  है
जो   समझा   सो   चंगा   है
दिल की किया तो खुश रह लेगा
मान के चल   सब जग चंगा है

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८    

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