रविवार, 24 मई 2020

हे गरीब


हे गरीब ! तुम गरीब रहो.
हम तुम्हें दिखाएँगे
सुंदर मोहक स्वप्न
गरीबी में ही सपने देखने का
मिलता है वास्तविक सुख
जिन्हें देखकर मचल जाओगे
उन्हें पाने के लिए आओगे
हमारे पास बार-बार, हर बार
गरीबों के लिए सपना एक लत है, नशा
परन्तु असलियत में हम तुम्हें देंगे
सड़कें नहीं, पगडंडियाँ ! वो भी इतनी घुमावदार
कि तुम पहुंच ही नहीं पाओगे
अपने स्वप्न के नगर !
हम तुम्हें सुविधाओं के ना पर देंगे
लम्बे-लम्बे क़ानून, जिसके शिकंजे में
फँसकर तुम ठीक से रो भी नहीं पाओगे
गरीब तुम गरीब रहो !
तुम्हारी गरीबी से ही हमारी शान है
जब तक तुम गरीब हो
तभी तक हुक्मरान हैं हम
हम किसे अपमानित करें ?
किसे दिखाएँगे अपनी शेखी ?
अपना खीझ किस पर उतारेंगे ?
हमारे घरों के जूठे बर्तन कौन साफ़ करेगा ?
हमारे कुत्तों की देखभाल कौन करेगा ?
हमारी गाड़ियाँ कौन साफ़ करेगा ?
हम किसे देंगे गालियाँ और
कौन सहेगा हमारी बिना मतलब की धौंस ?
हमें कौन करेगा बार बार सलाम ?
हमारे लिए कौन गलायेगा अपनी हड्डियाँ ?
तुम्हारे पसीने की कमाई पर
हम कैसे उड़ेंगे जहाजों में ?
घूमेंगे मँहगी गाड़ियों में और
कैसे रहेंगे महलों में ?
इसलिए तुम्हारा गरीब रहना जरुरी है
वरना बिगड़ जाएगा सत्ता का संतुलन
सारे गरीब यदि हो गये अमीर तो
उद्योगों से लेकर खेतों
खदानों से लेकर पहाड़ों तक
कौन बहायेगा पसीना ?
इसलिए प्रकृति के संतुलन के लिए
हे गरीब ! तुम सदा गरीब रहो.


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com


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