मैंने  किया वफ़ा तो  ये एहसान नहीं था !
वो निकली बेवफ़ा तो
ये एहसान हो गया !!
पहले मुझे  लगा  था हाँ  मर ही  जाऊँगा
कुछ ही दिनों में हो
न हो गुज़र ही जाऊँगा
फिर देखा  बेवफ़ाई  करके
ख़ुश है वो बहुत
फिर सोचा हँसू क्यों
दिखाऊं डर ही जाऊँगा
शौहर  को  कोसती
 है  प्रेमी को  चूमती
अय्यारी सीख करके उस डगर ही  जाऊँगा
होकर  वो  खवातीन  गर  गुरुर  पाले है 
हूँ मैं भी आदमी  कुछ
तो कर ही जाऊँगा
घर से मेरे पहले
बहुत कुछ और भी पड़ता 
मयखाना भी पड़े है
क्या मैं घर ही जाऊँगा
मुझसे किया निकाह मोहब्बत
किसी से की
ये  खेल  खेलने
 तेरे  शहर  ही  जाऊँगा
तुझसे किया था प्रेम
तुझ पर ही मिटा था 
अब कोई नहीं  मंजिल के दर ही जाऊँगा
पवन तिवारी 
संवाद – ७७१८०८०९७८  
 
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