मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

समझा था गणित


समझा था गणित जिन्दगी सो वो बिखर गयी
अच्छा हुआ कि  प्यार मिला  तो  सुधर गयी

जिस ज़िन्दगी की  ख़ातिर  सारे  जतन किये
होते  जतन  ही  पूरा  ज़िन्दगी  गुज़र  गयी

जिस ज़िंदगी से मिलने को भटका मैं उम्र भर
फिर  मौत  मिली  बोली  ज़िंदगी गुज़र गयी

भीतर  थी  मेरे  ज़िन्दगी  ढूंढा  किया बाहर
ज सच  पता  चला  तो  वो दूजे  नगर गयी

ज़िंदगी  से  ही  पता  पूछा   किया  उसका
चुपचाप एक  रोज  किसी   और  घर  गयी

अपने  को  खर्च  करना  हंसते  हुए  पवन
फिर ज़िन्दगी  कहेगी  ज़िन्दगी  संवर  गयी

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com  

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