सोमवार, 20 अप्रैल 2020

मेरे पास सुख के कई साधन हैं.


मेरे पास सुख के कई साधन हैं.
किन्तु वही दुःख के भी साधन हैं.
जब मैं दुःख को यूँ ही धकियाकर
बढ़ जाता हूँ आगे ;
किसी मित्र से बातें करने !
मुझे बातें करना सुख देता है.
हाँ, यह सुख तब और बढ़ जाता है,
जब सामने वाला
सुनने का भी सुख ले रहा हो !
मुझे प्रेम करने जैसा सुख मिलता है !
जब मैं किसी को सुनते हुए
ये महसूस करता हूँ कि बस !
इसका बोलना कभी खत्म न हो ;
हाँ, पर कई बार
जब अपनी इच्छा के विरुद्ध
बोलना या सुनना पड़ता है,
तब मुझे कहीं दूर
भाग जाने का मन करता है.
जहां मेरे सिवा सिर्फ प्रकृति हो !
यदि ऐसा नहीं होता तो,
नहीं कर सकता अपनी पीड़ा की व्याख्या !
हाँ, इसे पढ़कर जरुर आप को अपने
कई ऐसे सुख और दुःख याद आये होंगे !



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

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