गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

जिसको वर्षों से चाहा था


जिसको वर्षों से चाहा था मैनें वह ही मेरी  डगर आ रहा है
दिल उछलने लगा है अभी से वो जो आता नज़र आ रहा है

चाह दिल से निकलती  अगर है चाह खुद ही चली आती है
जो बलन्दी लिए हसरतों में उनके घर तक सफ़र आ रहा है

ये पसीने  सजे हैं  जो  माथे  मेरे  मेहनत  के  हैं ताज़ सारे
इनको कहना महज मत पसीना इनसे महलों का डर आ रहा है

आके चौराहों पे सारे रिश्ते  अपने मतलब  की गाड़ी है ढूंढें
रिश्तेदारों की अटकी हैं सांसे सुन के रिश्ता नगर आ रहा है

मारने के लिए  जिसको  उसने  पवन  सौ पैंतरें आजमाये
लोगों को सामने देखकर करके बोला मेरा जिगर आ रहा है




पवन तिवारी
सम्वाद – ७७१८०८०९७८

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