मंगलवार, 31 मार्च 2020

महामारी और माटी




इस महामारी ने स्पष्ट दिखा दिया,
गरीब अपनी माटी से प्रेम करता है.
अमीर सुविधाओं से,
कैसी विडम्बना है ?
विपत्ति में गरीब अपने गाँव
हर हाल में लौटना चाहता है.
और अमीर भागना चाहता है, परदेश !
आज जब महामारी फ़ैली है
चारो ओर, प्राणों पर संकट है.
लोग घरों में स्वयं को कर लिए हैं बंद.
मोटर,बस,रेल सब बंद !
ऐसे में प्राणों को
हथेली पर धर कर,
साधनहीन,गरीब,श्रमिक,मजदूर
भूख प्यास की चिंता किये बिना,
अपनी माटी, अपने गाँव की ओर
सैकड़ों हज़ारों कोस दूर
पैदल ही चल पड़ा है.
सरकारों की गुहार और
पुलिस की मार भी
नहीं रोक पा रही.
उन्हें भूख और प्यास की चिंता नहीं है,
पता है उनकी असली चिंता ???
उनकी चिंता है- अपनों के बीच
अपनी माटी में मरना.
उन्हें मौत से भी नहीं,
अपनी माटी से बिछड़ कर
मरने का डर है.
वे नगर की कमाई
गाँव में लगाते हैं.
एक अच्छा घर बनाते हैं.
जो अमीर हैं,
वे भारत से लेते हैं
विविध प्रकार के ज्ञान और दक्षता
जैसे चिकित्सा,अभियांत्रिकी,भौंतिकी,रसायन
जीव,अन्तरिक्ष, कृषि एवं भू विज्ञान आदि का,
और विदेशों में करते हैं उनका उपयोग
स्व की सुविधाओं हेतु
नहीं लौटते अपनी माटी में
 पूछने पर कहते हैं- जीवन की गुणवत्ता
यहाँ है, भारत में नहीं !
स्वार्थ, स्मृतियों को कितना दुर्बल बना देता है.
जिस देश में जीवन और गुण दोनों पाया
उसी पर दोष.
उनके लिए प्रथम हैं सुविधायें !
गरीब के लिए अपनी माटी प्रथम है.
अक्सर उच्च शिक्षा बनाती है स्वार्थी,
और करा देती है
संवेदनाओं की असमय हत्या !
यहाँ तक सोचने पर
मेरा मन लड़खड़ाने लगा है.
मस्तिष्क को भी चक्कर आ रहा है,
अब आप सोचिये !  



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८   
  







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