गुरुवार, 26 मार्च 2020

घास छीलना



 जीवन भर घास छीलने का मुहावरा
सहज भाव में न्यूनता का,
विकास में स्थायी अवरोध
और व्यंग्यात्मक उपहास
और अपमान का
थोपता है बोध !
किन्तु ,अगर वो देखे
जिसके पास हो समझ,
कला और दृष्टि !
वह घास छीलने को
सिद्ध कर सकता है महान कर्म !
क्योंकि प्रत्येक कार्य में
कला का अदृश्य किन्तु,
शसक्त पक्ष उपस्थित होता है.
अब्राहम लिंकन ने भी छीली थी घास !
जिसे घास छीलने में, उसके
कला पक्ष का है ज्ञान ;
वह घास सतत छीलता है
किन्तु, उसमें मिट्टी आती नहीं
ज़रा भी उठकर!
किन्तु कलाहीन जब
छीलने जाता है वही घास !
घास से अधिक खोद देता है मिट्टी,
और काट लेता है कभी उंगलियाँ भी.
फिर खुरपी पर, कभी खुद पर,
होता है खिन्न
क्योंकि घास छीलना
कला है, न्यूनता नहीं,
बात तो मात्र दृष्टि की.

पवन तिवारी
सम्पर्क – ७७१८०८०९७८



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