बुधवार, 18 सितंबर 2019

अपनी शर्त पर जीना


अपनी शर्तों पर जीने के तो मोल चुकाने पड़ते हैं
अपने भी बैरी हो जाते अपनों  से लड़ने लगते हैं
अपने निकट के रिश्ते  ही अंजाने जाने से लगते
सोने  वाली रातों  में हम  अनचाहे ही जगते हैं

छोटे - छोटे  सपने टूटे  बंजारे  लगने  लगते हैं
कई बार तो अपने साये निज से भगने  लगते हैं
अपनों के तानों  के घंटे  कानों में ऐसे हैं बजते
जैसे कि सोये  में सर  पर  हथौड़े पड़ने लगते हैं

भाई, परिवार, पिता  छूटे, छूटे  मित्र से  रिश्ते भी
जो क़दर नहीं करते अपनी उनके खातिर पिसते भी
अपने ढंग  से जीना जग में आवारगी है सबसे बड़ी
सच  का  साथ  सदा  देते घुटने के बल घिसते भी

अपनी शर्तों पर जीने से कुछ  मित्र भी  बैरी बनते हैं
पर हम जैसे अपनी मर्जी के लोग तो फिर भी रमते हैं
सारे संघर्षों, बाधाओं  के  बाद  भी  जीने का मतलब
अपनी शर्तों पर  जीने से  लगता  सम्मान से मरते हैं

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – पवनतिवारी@डाटामेल.भारत

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